1857 Ka Vidroh:1857 के विद्रोह के प्रमुख कारण राजनीतिक कारण ।1857 की क्रांति के राजनीतिक कारणों में लॉर्ड वेलेजली की ‘सहायक संधि’ तथा लॉर्ड डलहौजी का ‘व्यपगत का सिद्धांत प्रमुख था। वेलेजली की ‘सहायक संधि’ के अनुसार भारतीय राजाओं को अपने राज्यों में कंपनी की सेना रखनी पड़ती थी। सहायक संधि से भारतीय राजाओं की स्वतंत्रता समाप्त होने लगी और राज्यों में कंपनी का हस्तक्षेप बढ़ने लगा था।1857 Ka Vidroh:
लॉर्ड डलहौजी की ‘राज्य हड़प नीति’ या ‘व्यपगत का सिद्धांत’ (Doctrine of lapse) द्वारा अंग्रेजों ने हिंदू राजाओं के दत्तक पुत्र लेने के अधिकार को समाप्त कर दिया। वैध उत्तराधिकारी नहीं होने की स्थिति में राज्यों का विलय अंग्रेज़ी राज्यों में कर लिया जाता था। • लॉर्ड डलहौजी द्वारा विलय किये गए राज्यों का क्रम-सतारा (1848)जैतपुर, संबलपुर (1849) → बघाट (1850) → उदयपुर (1852) झाँसी (1853) नागपुर (1854) → करौली (1855) अवध (1856), रियासतों के विलय के अतिरिक्त पेशवा (नाना साहब) की पेंशन रोके जाने का विषय भी असंतोष का कारण बना। 1857 Ka Vidroh:
1857 Ke Vidroh Ke Prashasnik Karan: प्रशासनिक कारण
- 1857 Ke Vidroh Ke Prashasnik Karan: प्रशासनिक कारण : अंग्रेजों ने भेदभावपूर्ण नीति अपनाते हुए, भारतीया की प्रशासनिक सेवाओं में सम्मिलित नहीं होने दिया तथा उच्च पदों पर भारतीयों को हटाकर ब्रिटिश लोगों को नियुक्त किया। अंग्रेज़ भारतीयों को उच्च सेवाओं हेतु अयोग्य मानते थे। इन सब बातों से क्षुब्ध होकर भारतीयों में आक्रोश का भाव जागृत हो चुका था, जो 1857 की क्रांति के रूप में सामने आया। 1857 Ka Vidroh:
- अंग्रेज़ न्याय के क्षेत्र में भी स्वयं को भारतीयों से उच्च व श्रेष्ठ समझते थे। भारतीय जज किसी अंग्रेज के विरुद्ध मुकदमे की सुनवाई नहीं कर सकते थे। अंग्रेजों की न्याय प्रणाली पक्षपातपूर्ण, दीर्घावधिक व खर्चीली थी। अतः भारतीय इससे असंतुष्ट थे, जो 1857 के विद्रोह में जनाक्रोश का एक कारण बना
- डलहौजी ने तंजौर तथा कर्नाटक के नवाबों की उपाधियाँ ज़ब्त कर लीं, मुगल शासक बहादुरशाह को अपमानित कर लाल किला खाली करने को कहा और लॉर्ड कैनिंग ने घोषणा की कि बहादुरशाह के उत्तराधिकारी मुगल सम्राट नहीं सिर्फ राजा ही कहलायेंगे। परिणामतः मुगलों ने क्रांति के समय विद्रोहियों का साथ दिया।1857 Ka Vidroh:
- प्रशासन संबंधी कार्यों में योग्यता की जगह धर्म को आधार बनाया गया जिससे ईसाईयत की धर्मांतरण पद्धति का प्रसार हुआ, जिससे आम जन में विद्रोह की भावना उत्पन्न हुई।
- 18वीं सदी के उत्तरार्द्ध से ही अकालों की बारंबारता ने ब्रिटिश प्रशासनिक तंत्र की पोल खोल दी।
1857 Ka Vidroh:सामाजिक एवं धार्मिक कारण
- सांस्कृतिक सुधार की नीतियों से पारंपरिक भारतीय संस्कृति को हीन मानकर बदलाव करना, इससे समाज का रूढ़िवादी वर्ग ब्रिटिशों के विरुद्ध खड़ा हो गया।
- 1850 में आये ‘धार्मिक निर्योग्यता अधिनियम’ द्वारा ईसाई धर्म को ग्रहण करने वाले को पैतृक संपत्ति में अधिकार मिल गया। इससे हिंदू समाज में असंतोष की भावना फैल गई।
- 1813 के चार्टर एक्ट में ईसाई मिशनरियों के धर्मातरण कार्यक्रमों को प्रोत्साहित किया गया। कालांतर में बेरोज़गारों, विधवाओं, जनजातियों व अनाथों का धर्मांतरण करवाया गया। साथ ही अंग्रेजों की नस्लवादीभेदभाव की नीतियों ने भी विद्रोह की पृष्ठभूमि को तैयार किया। 1857 Ka Vidroh:
- 1856 में डलहौजी के समय प्रस्तुत विधवा पुनर्विवाह अधिनियम लॉर्ड कैनिंग के शासन में पारित हुआ। इसके पहले भी सती प्रथा, दास प्रथा व नर बलि प्रथा पर लगाई गई रोक के कारण सामाजिक तनाव व्याप्त था।
- पाश्चात्य शिक्षा ने भारतीय समाज की मूल विशेषताओं को समाप्त कर दिया। परिणामत: परंपरागत शिक्षा समर्थकों ने विद्रोह के समय अंग्रेजों का विरोध किया। 1857 Ka Vidroh:
1857 Ka Vidroh: 1857 का विद्रोह के कारण
- आर्थिक कारण• ब्रिटिश भू-राजस्व नीतियों, यथा- स्थायी बंदोबस्त, रैय्यतवाड़ी तथा महालवाड़ी व्यवस्था आदि के द्वारा किसानों का जमकर शोषण किया गया।
- व्यापारिक कंपनी ने अपनी समस्त नीतियों के मूल में आर्थिक लाभको केंद्र में रखा।
- कंपनी की नीतियों ने पारंपरिक उद्योगों को समाप्त कर दिया। इससे दस्तकारी व हथकरघा उद्योग में संलग्न वर्ग व किसानों की आर्थिक स्थिति अत्यंत सोचनीय हो गई तथा कृषि के वाणिज्यीकरण से खाद्य संकट उत्पन्न हो गया।
1857 Ka Vidroh: 1857 का विद्रोह के सैन्य कारण•
- सेना में भारतीय और अंग्रेजी सैनिकों का अनुपात लगभग 5:1 था।
- सैन्य सेवा में नस्लीय भेदभाव विद्यमान थे और योग्यता के बावजूद भारतीय सैनिक अधिकतम सूबेदार पद तक पहुँच सकते थे और साथ ही उनके साथ बुरा बर्ताव किया जाता था।
- लॉर्ड कैनिंग के समय 1856 में ‘सामान्य सेवा भर्ती अधिनियम पारित किया गया, जिसके द्वारा किसी भी समय किसी भी स्थान पर, समुद्र पार भी सैनिकों का जाना अंग्रेज़ी आदेश पर निर्भर हो गया। यह भारतीयों के सामाजिक-धार्मिक मान्यताओं के खिलाफ़ था ।
- 1854 में डाकघर अधिनियम लाया गया, जिसके द्वारा अब सैनिकों को भी पत्र पर स्टैंप लगाना अनिवार्य हो गया। यह सैनिकों के विशेषाधिकारों के हनन जैसा था। 1857 Ka Vidroh:
1857 Ka Vidroh: 1857 का विद्रोह के तात्कालिक कारण
- तात्कालिक कारण : दिसंबर 1856 में सरकार ने पुरानी लोहे वाली बंदूक के स्थान पर ‘न्यू इनफील्ड राइफल के प्रयोग का निश्चय किया। इ लगने वाले कारतूस के ऊपरी भाग को दाँतों से खोलना पड़ता था।
- बंगाल सेना में यह बात फैल गई कि कारतूस की खाल में और सूअर की चर्बीबी का प्रयोग किया जाता है। अतः इससे हिंदू और मुस्लिम सैनिकों को लगा कि चबीदार कारतूस का प्रयोग उनके धर्म को नष्ट कर देगा।
- अधिकारियों ने इस अफवाह की जाँच किये बिना तुरंत इसका खंडन कर दिया। कालांतर में यह बात सही साबित हुई कि गाय और सूअर की चर्बी वास्तव में वूलिच शस्त्रागार में प्रयोग की जाती थी।
- सैनिकों का विश्वास था कि सरकार जान-बूझकर ऐसे कारतूस का प्रयोगकरके उनके धर्म को नष्ट करने तथा उन्हें ईसाई बनाने का प्रयत्न कर रही है। अतः सैनिकों ने क्षुब्ध होकर अंग्रेज़ों के विरुद्ध विद्रोह कर दिया।
1857 Ka Vidroh:1857 के विद्रोह का प्रारंभ
- 1857 के विद्रोह का प्रारंभ• 29 मार्च, 1857 को चबी लगे कारतूस के प्रयोग का विरोध 340 रेजिमेंट बैरकपुर के सैनिक मंगल पांडेय ने किया तथा विद्रोह की शुरुआत कर दी। उसने सैन्य अधिकारी लेफ्टिनेंट बाग एवं मेजर सार्जेण्ट की गोली मारकर हत्या कर दी। 8 अप्रैल 1857 को सैन्य अदालत के निर्णद के बाद मंगल पांडेय को फाँसी की सजा दे दी गई, जो कि 1857 की क्रांति का प्रथम शहीद माना गया। (एन.सी.ई.आर.टी. के अनुसार, मंगल पांडेय को 29 मार्च, 1857 को फाँसी की सजा दी गई थी।1857 Ka Vidroh:
- 1857 के विद्रोह के दौरान बैरकपुर में कमांडिंग ऑफिसर हैंरसे था।
- 10 मई, 1857 को मेरठ छावनी में तैनात भारतीय सेना ने चर्बी युक्त कारतूस के प्रयोग से इनकार कर दिया एवं अपने अधिकारियों पर गोलियाँ चलाई और विद्रोह प्रारंभ कर दिया। इस समय मेरठ में सैन्य छावनी का अधिकारी जनरल हेविड था।
1857 Ka Vidroh: 1857 का विद्रोह का विस्तार समझिए
- विद्रोह का विस्तारदिल्ली• विद्रोह का आरंभ 10 मई, 1857 को मेरठ छावनी में हुआ। सिपाहियों ने अपने अधिकारियों पर गोली चलाई और अपने साथियों को मुक्त करवा कर दिल्ली की ओर कूच किया तथा 11 मई को मेरठ के विद्रोही दिल्ली पहुँचे और 12 मई, 1857 को उन्होंने दिल्ली पर अधिकार कर लिया तथा मुगल बादशाह बहादुरशाह द्वितीय को पुनः भारत का सम्राट व क्रांति का नेता घोषित किया।
- दिल्ली में मुगल शासक बहादुरशाह द्वितीय को प्रतीकात्मक नेतृत्व दिया गया, किंतु वास्तविक नेतृत्व बख्त खाँ के पास था। हालांकि दिल्ली पर अंग्रेजों का पुनः अधिकार सितंबर 1857 को पूरी तरह हो गया। इस संघर्ष को दबाने के लिये अंग्रेज अधिकारी जॉन निकोलसन, हडसन व लॉरेंस को भेजा गया जिसमें जॉन निकोलसन मारा गया।
1857 Ka Vidroh:1857 का विद्रोह का परिणाम
- 1857 का विद्रोह का परिणाम : विद्रोह का परिणाम• स्वतंत्रता संग्राम की दृष्टि से भले ही यह विद्रोह असफल रहा हो, परंतु इसके दूरगामी परिणाम काफी उपयोगी रहे। मुगल साम्राज्य का दरवाजा सदा के लिये बंद हो गया। ब्रिटिश क्राउन ने कंपनी से भारत पर शासन करने के सभी अधिकार वापस ले लिये।
- 1 नवंबर, 1858 में इलाहाबाद में आयोजित दरबार में लॉर्ड कैनिंग ने महारानी विक्टोरिया की उद्घोषणा को पढ़ा। उद्घोषणा में में कंपनी का शासन समाप्त कर भारत का शासन सीधे क्राउन के अधीन कर दिया गया।
- उद्घोषणा में यह स्पष्ट किया गया कि भारतीय राज्यों को ब्रिटिश साम्राज्य में विलय करने के किसी भी विचार का परित्याग किया. जाएगा। फलतः भारतीय नरेशों को गोद लेने का अधिकार वापस कर दिया गया।
- 1858 के अधिनियम के द्वारा भारत राज्य सचिव के पद का प्रावधान किया गया तथा उसकी सहायता के लिये 15 सदस्यीय इंडिया काउंसिल (मंत्रणा समिति) की स्थापना की गई। इन सदस्यों में 8 की नियुक्ति ब्रिटिश सरकार द्वारा तथा 7 की नियुक्ति ‘कोर्ट ऑफ डायरेक्टर्स’ द्वारा किया जाना सुनिश्चित किया गया। भारत सचिव ब्रिटिश कैबिनेट का सदस्य होता था और इस प्रकार संसद के प्रति उत्तरदायी होता था।
- 1858 के अधिनियम के तहत भारत के गवर्नर जनरल को वायसराय कहा जाने लगा। इस तरह लॉर्ड कैनिंग भारत के प्रथम वायसराय बने। 1857 Ka Vidroh:
- ब्रिटिश के साम्राज्य विस्तार पर रोक, धार्मिक मामलों में अहस्तक्षेप, सबके लिये एक समान कानूनी सुरक्षा उपलब्ध कराना, भारतीयों के प्राचीन अधिकारों की रक्षा व रीति-रिवाजों के प्रति सम्मान के वायदे भारत सरकार अधिनियम, 1858 के तहत किये गए।
- अंग्रेजों की सेना का पुनर्गठन किया गया ताकि भविष्य में ऐसी घटनाओं से बचा जा सके। तोपखाना पूर्णतः यूरोपीय सैनिकों के हाथों में सौंप दिया गया। भारतीय सैनिकों की संरचना एवं अनुपात में भी बदलाव किये गए।
1857 Ka Vidroh Overview: 1857 का विद्रोह का ओवरव्यू
1857 Ka Vidroh: | Date/ Years– (वर्ष) |
1857 का विद्रोह के राजनीतिक कारण | 1857 की संधि तथा लॉर्ड वेलेजली की ‘ व्यापगत का सिद्धांत प्रमुख था |
1857 का विद्रोह का प्रारंभ कब शुरू हुआ | 10 मई 1857 को मेरठ में कंपनी के भारतीय सिपाहियों द्वारा शुरू हुआ |
अवध का विलय | 1857 में |
लॉर्ड डलहौजी द्वारा विलय किए गए राज्य 1857 Ka Vidroh: | सतारा ( 1848), जैतपुर, संबलपुर( 1849), बघाट(1850), उदयपुर(1852), झांसी(1853), नागपुर(1854), करौली(1855), अवध(1856) |
1857 Ka Vidroh: FAQ’s
1857 का विद्रोह कब शुरू हुआ?
10 मई 1857 को मेरठ में कंपनी के भारतीय सिपाहियों द्वारा शुरू हुआ
1857 की क्रांति का मुख्य कारण क्या था?
1857 की क्रांति का प्रमुख कारण ब्रिटिश साम्राज्य की नीतियाँ थी जिससे तंग आकर अंततः विद्रोह का ज्वालामुखी फूट पड़ा।
1857 की क्रांति / विद्रोह की शुरुआत कहाँ से हुई थी?
1857 का संग्राम ब्रिटिश शासन के खिलाफ एक बड़ी और अहम घटना थी। इस क्रांति की शुरुआत 10 मई, 1857 ई. को मेरठ से हुई, जो धीरे-धीरे कानपुर, बरेली, झांसी, दिल्ली, अवध आदि स्थानों पर फैल गई। 17/02/2023
1857 की क्रांति को किसने क्या कहा?
बेंजामिन डिजरेली (ब्रिटिश प्रधानमंत्री) ने इसको राष्ट्रीय विद्रोह बताया। *अशोक मेहता ने अपनी पुस्तक द ग्रेट रिबेलियन में इसे राष्ट्रीय विद्रोह कहा। *वी डी सावरकर ने 1909 में लिखित अपनी पुस्तक द इंडियन वार ऑफ इंडिपेंडेंस 1857 मैं इसे सुनियोजित स्वतंत्रता संग्राम की संज्ञा दी थी।