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कॉप-27 और परिणाम 

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cop27 हाल ही में जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेशन (UNFCCC) के पक्षकारों का 27वाँ सम्मेलन (COP-27) का आयोजन मिस्त्र के शर्म अल शेख में आयोजित हुआ। cop27

क्या आप अवगत है?

पार्टियों का सम्मेलन (COP)/कॉप, संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन फ्रेमवर्क कन्वेंशन (UNFCCC) का निर्णय लेने वाला सर्वोच्च निकाय है।

वर्ष 1992 में ब्राजील के रियो डी जैनेरियो में पर्यावरण और विकास के मुद्दे पर यूनाइटेड नेशन पृथ्वी सम्मेलन (Earth Summit) के दौरान, जलवायु परिवर्तन पर यूएन फ्रेमवर्क संधि पारित की गई, और इसके लिये समन्वय संस्था UNFCCC स्थापित की गई। cop27

प्रत्येक वर्ष, COP की मेजबानी एक अलग देश द्वारा की जाती है और इस तरह की पहली COP बैठक- ‘COP-1’- जर्मनी में 1995 में हुई थी।

सम्मेलनों में विश्व के नेताओं, वार्ताकारों, और मंत्रियों तथा नागरिक समाज, व्यापार, अंतर्राष्ट्रीय संगठनों एवं मीडिया के प्रतिनिधियों
द्वारा भी भाग लिया जाता है। cop27

■ UNFCCC को घोषित लक्ष्य, ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जनों में कटौती लाना है ताकि मानवीय गतिविधियों के कारण होने वाले जलवायु परिवर्तन के खतरनाक दुष्प्रभावों की रोकथाम की जा सके। अब तक 197 पक्षों ने इस पर हस्ताक्षर किये हैं। वर्ष 1994 से यह संधि लागू हो गई, और उसके बाद से प्रत्येक वर्ष संधि के संबद्ध पक्षों के सम्मेलन, या COPs, औपचारिक वैश्विक जलवायु शिखर बैठकें आयोजित की जाती रही हैं।

हालाँकि, वर्ष 2020 इसका एक अपवाद है चूँकि कोविड-19 महामारी के कारण COP-26 के आयोजन में एक वर्ष की देरी हुई है।

इन बैठकों के दौरान, देशों ने मूल संधि में विस्तार के लिये वार्ता आगे बढ़ाई गई है, ताकि उत्सर्जनों पर कानूनी रूप से बाध्यकारी कटौतियाँ स्थापित की जा सकें। cop27

उदाहरणस्वरूप, वर्ष 1997 में क्योटो प्रोटोकॉल और वर्ष 2015 में पेरिस जलवायु समझौता, जिसमें सभी देशों ने वैश्विक तापमान में वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने जलवायु कार्रवाई वित्त पोषण को बढ़ावा देने के लिये MI DUAL CAMERA सों को मजबूती देने पर सहमति व्यक्त की है। cop27

अन्य कॉप सम्मेलनों की तुलना में COP-27 किन मायनों में अलग है?

वर्ष 2015 में हुए पेरिस जलवायु समझौते के बाद, वर्ष 2021 में पाँचवी बार, यूएन वार्षिक जलवायु सम्मेलन (COP-26) आयोजित किया गया… चूँकि कोविड-19 महामारी के कारण 2020 में सम्मेलन आयोजित नहीं हो पाया था। cop27

■ COP-26 के दौरान ग्लासगो जलवायु समझौते‘ (Glasgow Climate Pact) पर सहमति हुई, जिसमें वैश्विक तापमान में वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने की बात कही गई है। cop27

पेरिस समझौते को वास्तविकता में पूर्ण रूप से किये के सिलसिले में भी प्रगति दर्ज की गई, और व्यावहारिक उपायों के लिये पेरिस नियम पुस्तिका (Paris Rulebook) को अन्तिम रूप दिया गया। ग्लासगो सम्मेलन के दौरान वार्ता कक्षों के भीतर व बाहर भी, नैट-शून्य उत्सर्जन, वन संरक्षण और जलवायु वित्त पोषण समेत विभिन्न क्षेत्रों में अनेक संकल्प लिये गए। cop27


कार्बन उत्सर्जन में कटौती: इसका उद्देश्य इस बात की निगरानी करना है कि सभी देश अपने उत्सर्जनों में किस प्रकार से कटौती कर रहे हैं?

देशों से यह दर्शाने की अपेक्षा कि वे किस प्रकार ग्लासगो सम्मेलन में हुई सहमति को लागू करने, जलवायु योजनाओं की समीक्षा करने और उत्सर्जन कटौती के लिये कार्य योजना तैयार करने पर काम कर रहे हैं।

अनुकूलनः जलवायु परिवर्तन दस्तक दे चुका है। ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कटौती और वैश्विक तापमान वृद्धि की गति धीमी करने के लिये हरसंभव प्रयासों से इतर देशों को जलवायु परिवर्तन के नतीजों का सामना करने के लिये स्वयं को ढालना होगा, ताकि आम लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके।

• UNFCCC का स्पष्ट रूप से मानना है कि मौजूदा व भावी जलवायु जोखिमों से निपटने के लिये, अनुकूलन वित्त पोषण के स्तर में बड़ी वृद्धि की जानी आवश्यक है। निजी व सार्वजनिक, सभी स्रोतों से यह किया जाना होगा और सरकारों, वित्तीय संस्थाओं व निजी क्षेत्रों सहित सभी पक्षों को इसका हिस्सा बनना होगा।

जलवायु वित्त पोषणः जलवायु वित्त पोषण एक बार फिर, COP-27 सम्मेलन के दौरान एक बड़ा विषय है। वित्त पोषण संबंधी चर्चाएँ पहले से ही एजेंडा का हिस्सा हैं।

यूक्रेन रूस युद्ध: इस युद्ध के परिणामस्वरूप, भूदृश्य में परिवर्तन हुआ है।

निसन्देह, यूक्रेन पर रूसी आक्रमण के बाद से महँगाई बढ़ी हैं और वैश्विक ऊर्जा, खाद्य व सप्लाई चेन में संकट उपजा है। 


हानि और क्षति कोष की स्थापनाः हानि और क्षति कोष की स्थापना पर सहमती बनी है इससे चरम मौसमी घटनाओं का सामना करने वाले गरीब सुभेद्य देशों की सहायता की जाएगी।

हानि और क्षति पर सेंटियागो नेटवर्क के कार्यान्यन की व्यवस्था की गई है। इसके तहत जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों के प्रति सुभेद्य विकासशील देशों को तकनीकी सहायता प्रदान की जाएगी।

विकासशील देशों ने हानि व क्षति कोष की स्थापना के लिये मज़बूती से कई बार अपील की है, ताकि उन देशों के लिये (जो इसके प्रभावों से सबसे अधिक जूझ रहे हैं) वित्तीय सहायता सुनिश्चित की जा सके, जिन्होंने जलवायु संकट में बहुत कम योगदान दिया है।

शर्म अल शेख अनुकूलन एजेंडाः सम्मेलन में शर्म अल शेख अनुकूलन एजेंडा अपनाया गया इसका लक्ष्य जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के प्रति अधिक सुभेद्य समुदायों के लोगों को वर्ष 2030 तक ऐसे प्रभावों का सामना करने में सक्षम बनाना है।

अनुकूलन प्रतिबद्धता की पुष्टिः सरकारों के बीच वैश्विकअनुकूलन पर वैश्विक लक्ष्य तथा प्रथम वैश्विक स्टॉकटेक के संदर्भ में सूचित करनाकी दिशा में आगे बढ़ने पर सहमती बनी है।

स्टॉकटेक को पेरिस समझौते के लक्ष्य की प्राप्ति हेतु की गई सामूहिक प्रगति की समीक्षा करने के लिये डिज़ाइन किया गया है।

पंचवर्षीय कार्यक्रमः विकासशील देशों में जलवायु प्रौद्योगिकी समाधानों को बढ़ावा देने हेतु एक नए पंचवर्षीय कार्यक्रम की शुरुआत की गई।

फास्टेस्ट एंड क्लाइमेट लीडर्स पार्टनरशिप (FCLP): 28 देशों के नेताओं और यूरोपीय संघ ने FCLP की शुरुआत की है। इसका उद्देश्य COP-26 में की गई प्रतिबद्धताओं को लागू करने के हेतु विश्व की सरकारों, समुदायों और व्यवसायों को समेकित करना है।


इन आवर लाइफटाइम कैम्पेन: पर्यावरण वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय और संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) के तहत प्राकृतिक इतिहास के राष्ट्रीय संग्रहालय (NMNH) ने संयुक्त रूप सेइन अवर लाइफटाइमअभियान शुरू किया। इसका उद्देश्य 18 से 23 वर्ष की आयु के युवाओं को सतत् जीवन शैली के संदेश वाहक बनने के लिये प्रेरित करना है।

दीर्घकालिक निम्न कार्बन उत्सर्जन रणनीति (LT-LEDS): यह रणनीति ऊर्जा सुरक्षा के संबंध में राष्ट्रीय संसाधनों के तर्कसंगत उपयोग पर ध्यान केंद्रित करेगी। इसमें जीवाश्म ईंधनों का संक्रमण एक न्यायसंगत, सुचारु, टिकाऊ और सर्व-समावेशी तरीके से किया जाएगा।

छह रणनीतिक क्षेत्रों को प्राथमिकता दी: भारत ने ऊर्जा, परिवहन, शहरी, उद्योग, कार्बन डाइऑक्साइड का निम्नीकरण और वन क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित किया है। इनमें से, बिजली और उद्योग क्षेत्र मिलकर भारत के CO2 उत्सर्जन में तीन-चौथाई से अधिक का योगदान करते हैं. जबकि परिवहन और शहरी प्रणालियों में तेजी से बदलाव हो रहे हैं।


■ COP-27 जीवाश्म ईंधन पर अंकुश लगाने या ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने के लिये नए लक्ष्य निर्धारित करने पर किसी भी नए समझौते को शामिल करने में विफल रहा।cop27

वैश्विक जलवायु वित्त (2019-20) की जितनी ज़रूरत है उसका केवल एक-तिहाई ही उपलब्ध है। वर्ष 2009 में कोपेनहोगन सम्मेलन के दौरान, धनी देशों ने इस वित्त पोषण का संकल्प लिया था, लेकिन आधिकारिक जानकारी के अनुसार, यह लक्ष्य अभी अधूरा है।

हानि और क्षति कोष कैसे स्थापित किया जाएगा तथा इसे कैसे वित्तपोषित किया जाएगा इस पर अभी तक कोई समझौता नहीं हो पाया है।

संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) के नए विश्लेषण ने चेतावनी दी है कि विकासशील देशों को मिलने वाले अनुकूलन वित्त की मात्रा वर्तमान में ज़रूरत से पाँच से 10 गुना कम है। cop27


■ COP-27 ठोस प्रगति हासिल करने और जलवायु एजेंडे पर नीतियों को आगे बढ़ाने के लिये एक महत्त्वपूर्ण मील का पत्थर है। ऊर्जा दक्षता में वृद्धि कर ऊर्जा सुरक्षा बढ़ाने के भी पर्याप्त अवसर हैं। यह भी वैश्विक जलवायु परिवर्तन को संबोधित करने में योगदान देगा।

भारत ने COP-27 में अपनी इक्विटी को संरक्षित करने और विकासशील देशों के निर्वाचन क्षेत्र का समर्थन करने के लिये सही कदम उठाया है। भारत अपनी प्रतिबद्धताओं के माध्यम से जलवायु परिवर्तन से निपटने का बीड़ा उठाने के लिये अपनी आगामी अध्यक्षता का उपयोग करने के लिये बेहतर स्थिति में है। cop27

सरकारों के लिये, कार्बन मूल्य निर्धारण करने के विकल्प राष्ट्रीय परिस्थितियों और राजनीतिक वास्तविकताओं पर आधारित हैं। ज़रूरी कार्बन मूल्य निर्धारण पहल करने के संदर्भ में, एमिशन ट्रेडिंग सिस्टम (ETS) और कार्बन कर सबसे उपयुक्त है।

 

वर्ष 2017 तक, 42 देशों और 25 उप-क्षेत्राधिकार (शहरों, राज्यों और क्षेत्रों) ने पहले से ही कार्बन मूल्य निर्धारण की पहल की है।

भारत ने वर्ष 2060 तक अक्षय ऊर्जा स्रोतों से 40 फीसदी विद्युत उत्पन्न करने का लक्ष्य रखा है। इससे भारत के कार्बन उत्सर्जन के वर्ष 2005 के स्तर के मुकाबले एक-तिहाई होने की संभावना है।

भारत को वर्ष 2030 से पहले कार्बन उत्सर्जन को कम करने हेतु कड़े कदम उठाने होंगे ताकि वर्ष 2050 तक कार्बन उत्सर्जन को पूरी तरह से समाप्त करने का लक्ष्य पूरा किया जा सके।


           COP 27 से जुड़ी अहम जानकारी सारणी के साथ cop27


कॉप-27 और परिणाम
कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज़ (COP)
हाल ही में जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेशन (UNFCCC) के पक्षकारों का 27वाँ सम्मेलन (COP-27) का आयोजन मिस्त्र के शर्म अल शेख में आयोजित हुआ।
क्या आप अवगत है?      cop27
पार्टियों का सम्मेलन (COP)/कॉप, संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन
फ्रेमवर्क कन्वेंशन (UNFCCC) का निर्णय लेने वाला सर्वोच्च निकाय है।

वर्ष 1992 में ब्राजील के रियो डी जैनेरियो में पर्यावरण और विकास के मुद्दे पर यूनाइटेड नेशन पृथ्वी सम्मेलन (Earth Summit) के दौरान, जलवायु परिवर्तन पर यूएन फ्रेमवर्क संधि पारित की गई, और इसके लिये समन्वय संस्था UNFCCC स्थापित की गई।

अन्य कॉप सम्मेलनों की
तुलना में COP-27 किन मायनों में अलग है?
वर्ष 2015 में हुए पेरिस जलवायु समझौते के बाद, वर्ष 2021 में पाँचवी बार, यूएन वार्षिक जलवायु सम्मेलन (COP-26) आयोजित किया गया… चूँकि कोविड-19 महामारी के कारण 2020 में सम्मेलन आयोजित नहीं हो पाया था।

■ COP-26 के दौरान ग्लासगो जलवायु समझौते‘ (Glasgow Climate Pact) पर सहमति हुई, जिसमें वैश्विक तापमान में वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने की बात कही गई है।

सम्मेलन के उद्देश्य


कार्बन उत्सर्जन में कटौती: इसका उद्देश्य इस बात की निगरानी करना है कि सभी देश अपने उत्सर्जनों में किस प्रकार से कटौती कर रहे हैं?

देशों से यह दर्शाने की अपेक्षा कि वे किस प्रकार ग्लासगो सम्मेलन में हुई सहमति को लागू करने, जलवायु योजनाओं की समीक्षा करने और उत्सर्जन कटौती के लिये कार्य योजना तैयार करने पर काम कर रहे हैं।

सम्मेलन के प्रमुख सकारात्मक परिणाम
हानि और क्षति कोष की स्थापनाः हानि और क्षति कोष की स्थापना पर सहमती बनी है इससे चरम मौसमी घटनाओं का सामना करने वाले गरीब सुभेद्य देशों की सहायता की जाएगी।

हानि और क्षति पर सेंटियागो नेटवर्क के कार्यान्यन की व्यवस्था की गई है। इसके तहत जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों के प्रति सुभेद्य विकासशील देशों को तकनीकी सहायता प्रदान की जाएगी      cop27

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