ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी का आगमन ( east india company ki sthapna )
- 1599 में मर्चेंट एडवेंचरर्स नाम से विख्यात कुछ व्यापारियों ने पूर्व से व्यापार करने के उद्देश्य से गवर्नर एंड कंपनी ऑफ मर्चेंट्स ऑफ लंदन ट्रेडिंग टू द ईस्ट इंडीज़ नामक कंपनी की स्थापना की। कालांतर में इसी कंपनी का नाम संक्षिप्त करके ईस्ट इंडिया कंपनीकर दिया गया। east india company ki sthapna
- 31 दिसंबर, 1600 को महारानी एलिजाबेथ प्रथम ने एक रॉयल चार्टर जारी कर इस कंपनी को प्रारंभ में 15 वर्ष के लिये पूर्वी देशों से व्यापार करने का एकाधिकार पत्र दे दिया।
- किंतु आगे चलकर 1609 में ब्रिटिश सम्राट जेम्स प्रथम ने कंपनी को अनिश्चितकालीन व्यापारिक एकाधिकार प्रदान किया।
- कैप्टन विलियम हॉकिंस अगस्त 1608 में सूरत पहुँचा तत्पश्चात् 1609 में आगरा में जहाँगीर के शाही दरबार में आया। गौरतलब है कि कंपनी ने भारत के पश्चिमी तट पर सूरत में एक फैक्ट्री खोलने के उद्देश्य से कैप्टन हॉकिंस को मुगल शाही दरबार में शाही आज्ञा लेने के लिये भेजा गया था।
- एक शाही फरमान के द्वारा सूरत में फैक्ट्री खोलने की इजाजत मिल भी गई, किंतु मुगल दरबार में मौजूद पुर्तगाली अधिकारियों के दबाव में शाही फरमान को वापस ले लिया गया। east india company ki sthapna
नोट: हॉकिंस फारसी भाषा का बहुत अच्छा जानकार था। वह हैक्टर नामक प्रथम ब्रिटिश व्यापारिक जहाज़ का कप्तान भी था।
- 1611 में मुगल बादशाह जहाँगीर के दरबार में अंग्रेज़ कैप्टन मिडल्टन पहुँचा और व्यापार करने की अनुमति पाने में सफल हुआ। जहाँगीर ने 1613 में सूरत में अंग्रेज़ों को स्थायी कारखाना (फैक्ट्री) स्थापित करने की अनुमति प्रदान की।
- अंग्रेज कैप्टन थॉमस बेस्ट ने 1612 में सूरत के समीप स्वाल्ली में पुर्तगालियों के जहाजी बेड़े को पराजित कर उनके व्यापारिक एकाधिकार को भंग कर दिया।
- 1615 में इंग्लैंड के सम्राट जेम्स प्रथम का एक दूत सर टॉमस रो जहाँगीर के दरबार में आया। उसका उद्देश्य एक व्यापारिक संधि करना था। सर टॉमस रो ने मुगल साम्राज्य के सभी भागों में व्यापार करने एवं फैक्ट्रियाँ स्थापित करने का अधिकार पत्र प्राप्त कर लिया।
- 1623 ई. (17वीं शताब्दी के पहले चतुर्थांश) तक अंग्रेजों ने सूरत, आगरा, अहमदाबाद, मछलीपट्टनम (मसुलीपट्टनम) तथा भड़ौच में अपनी व्यापारिक कोठियों की स्थापना कर ली थी।
- दक्षिण भारत में अंग्रेजों ने अपनी प्रथम व्यापारिक कोठी की स्थापना 1611 में मसुलीपट्टनम को ।
- तत्पश्चात् 1639 में मद्रास में व्यापारिकbकोठी खोली गई।
- पूर्वी भारत में अंग्रेजों द्वारा स्थापित प्रथम कारखाना 1633 में उड़ीसा के बालासोर में खोला गया और 1651 में हुगली नगर में व्यापार करने की अनुमति मिल गई।तत्पश्चात् बंगाल, बिहार, पटना और ढाका में भी कारखाने खोले गए।
फ्रांसिस डे कब और क्यों आया
- फ्रांसिस डे ने 1639 में चंद्रगिरी के राजा से मद्रास को पट्टे पर ले लिये, जहाँ कालांतर में एक किलेबंद कोठी बनाई गई। इसी कोठी को;फोर्ट सेंट जॉर्ज नाम दिया गया। 1632 में गोलकुंडा के सुल्तान द्वारा अंग्रेजों को एक सुनहरा फरमान के माध्यम से गोलकुंडा राज्य में स्वतंत्रतापूर्वक व्यापार करने की अनुमति मिल गई।
- 1668 में ईस्ट इंडिया कंपनी ने ब्रिटिश सरकार से बंबई को प्राप्त किया। अपनी भौगोलिक अवस्थिति के कारण पश्चिमी तट पर कंपनी के मुख्यालय के रूप के बंदरगाहों में सूरत का स्थान जल्द ही बंबई ने ले लिया। 1687 में बंबई को वेस्टर्न प्रेसिडेंसी का मुख्यालय बना दिया गया।
- 1686 में अंग्रेजों ने हुगली को लूट लिया। परिणामस्वरूप उनका मुगल सेनाओं से संघर्ष हुआ। जिसके बाद कंपनी को सूरत. मसुलीपट्टनम, विशाखापट्टनम आदि के कारखानों से अपने अधिकार खोने पड़े, परंतु अंग्रेजों द्वारा क्षमायाचना करने पर औरंगजेब ने उन्हें डेढ़ लाख रुपया मुआवजा देने के बदले पुनः व्यापार के अधिकार प्रदान कर दिये।
- 1691 में जारी एक शाही फरमान के तहत एकमुश्त वार्षिक कर के बदले कंपनी को बंगाल में सीमा शुल्क से छूट दे दी गई। 1698 में अजीमुशान द्वारा अंग्रेजों को सुतानती, कलिकाता (कालीघाट-कलकत्ता) और गोविंदपुर नामक तीन गाँवों की जमींदारी मिल गई। इन्हीं को मिलाकर जॉब चानक ने कलकत्ता की नींव रखी। कंपनी की इस नई किलेबंद बस्ती को फोर्ट विलियम का नाम दिया गया। इस किलेबंद बस्ती के सुचारु प्रशासन के लिये एक प्रेसिडेंट और काउंसिल की व्यवस्था की गई और चार्ल्स आयर को प्रथम प्रेसिडेंट नियुक्त किया गया। east india company ki sthapna
कलकत्ता में क्या किया गया ।
कलकत्ता को अंग्रेजों ने 1700 में पहला प्रेसिडेंसी नगर घोषित किया। कलकत्ता 1774 से 1911 तक ब्रिटिश भारत की राजधानी बना रहा।1717 में मुगल सम्राट फर्रुखसियर का इलाज कंपनी के एक डॉक्टर विलियम हैमिल्टन द्वारा किये जाने से ने कंपनी को व्यापारिक सुविधाओं वाला एक फरमान जारी किया। फरमान के अंतर्गत एक निश्चित वार्षिक कर (3000 रुपये) चुकाकर निःशुल्क व्यापार करने तथा बंबई में कंपनी द्वारा ढाले गए सिक्कों के संपूर्ण मुगल राज्य में चलाने की आज्ञा मिल गई। उन्हें यहाँ कर देने पड़ते थे जो भारतीय को भी देने होते थे। ब्रिटिश इतिहासकार ओम्र्म्सने इस फरमान को कंपनी कामहाधिकार पत्र (मैग्नाकार्टा) कहा है।
भारत में कंपनी को फैक्ट्री एक किलाबंद क्षेत्र जैसी होती थी, जिसके अंदर गोदाम, दफ्तर और कंपनी के कर्मचारियों के लिये घर होते थे।
- 18वीं शताब्दी के मध्य ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के द्वारा बंगाल से निर्यातित होने वाले प्रमुख पण्य पदार्थों (स्टेपल कमोडिटीज़) में कपास, रेशम, अफीम और शोरा (बारूद निर्माण में उपयोग) शामिल थे।
डेनिसों का आगमन
- अंग्रेजों के बाद डेन 1616 में भारत आए। भारत, श्रीलका एव दक्षिणपूर्वी एशिया से व्यापार करने हेतु
डेनिसों ने डेनिस ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना की।
- डेनिसों ने 1620 में ट्रैकोबार तथा 1676 में सेरामपोर (बंगाल) में अपनी फैक्ट्रियाँ स्थापित की।
- यह कंपनी भारत में अपनी स्थिति मजबूत करने में
असफल रही और 1745 तक अपनी सारी फैक्ट्रियाँ अंग्रेजों को बेचकर चली गई।
फ्राँसीसियों का आगमन फ्रांसीसियों ने भारत में अन्य यूरोपीय कंपनियों की अपेक्षा सबसे बाद में प्रवेश किया।
- सन् 1664 में फ्रांस के सम्राट लुई चौदहवें के मंत्री कोल्बर्ट के प्रयास से फ्रेंच ईस्ट इंडिया कंपनी; की स्थापना हुई, जिसे कंपने फ्रैंक्स देस इंडेस ओरिएंटलेस कहा गया। east india company ki sthapna
फ्रांसीसी कंपनी का निर्माण फ्राँस सरकार द्वारा किया गया तथा इसका सारा खर्च सरकार ही वहन
करती थी। इसे सरकारी व्यापारिक कंपनी भी कहा जाता था, क्योंकि यह कंपनी सरकार द्वारा संरक्षित
एवं आर्थिक सहायता पर निर्भर थी। 1668 में फ्रैंकोइस कैरो द्वारा सूरत मे प्रथम फ्रांसीसी फैक्ट्री कीस्थापना की गई।
- गोलकुंडा रियासत के सुल्तान से अधिकार पत्र प्राप्त करने के पश्चात् सन् 1669 में मसूलीपट्टनम में दूसरी व्यापारिक कोठी स्थापित की गई।
1673 में कंपनी के निदेशक फ्रैंको मार्टिन ने वलिकोंडापुरम के सूबेदार शेर खाँ लोदी से कुछ गाँव प्राप्त किए, जिसे कालांतर में पॉण्डिचेरी के नाम से जाना गया। 1674 में फ्रैंकी मार्टिन ने पॉण्डिचेरी में व्यापारिक केंद्र की स्थापना की। पॉण्डिचेरी में फ्रांसीसियों द्वारा;फोर्ट लुई नामक किला बनवाया गया।1673 में बंगाल के नवाब शाइस्ता खाँ ने फ्राँसीसियों को एक जगह किराए पर दी, जहाँ चंद्रनगर; की सुप्रसिद्ध कोठी की स्थापना की गई। यहाँ का किला फोर्ट ओरलिएस कहा जाता है।
- फ्राँसीसियों द्वारा 1721 में मॉरीशस, 1725 में मालाबार में स्थित माहे एवं 1739 में कारीकल पर अधिकार कर लिया गया।
- 1742 के पश्चात् व्यापारिक लाभ कमाने के साथ-साथ फ्राँसीसियों की महत्त्वकांक्षाएँ भी जागृत हो गई। इस दौरान फ्राँसीसी गवर्नर डूप्ले का भारतीय राज्यों में हस्तक्षेप और फ्राँसीसी शक्ति का विस्तार हुआ। परिणामस्वरूप अंग्रेज़ों और फ्राँसीसियों के बीच तीन युद्ध हुए, जिन्हें कर्नाटक युद्ध के नाम से जाना जाता है।
- डूप्ले प्रथम यूरोपियन था, जिसने फ्राँसीसी दबदबे को बढ़ाने तथा भारतीय भू-क्षेत्र को अर्जित करने के उद्देश्य से भारतीय राजाओं के झगड़ों में भाग लेने की नीति प्रारंभ की। इसके द्वारा अपनाये गए हथकंडे अंग्रेज़ों की भारत विजय में मार्गदर्शक बने।
- भारत में उस समय पूर्वी घाट एवं कोरोमंडल तट के मध्य अवस्थित क्षेत्र को कर्नाटक का क्षेत्र कहा जाता था। लगभग बीस वर्षों तक दोनों कंपनियों के मध्य कर्नाटक युद्धों के रूप में संघर्ष चलता रहा। अंततः इस संघर्ष में अंग्रेज़ों की विजय हुई। कर्नाटक युद्ध का विस्तृत अध्ययन हम अगले अध्याय में करेंगे। east india company ki sthapna