CITES COP19 की बैठक पनामा में 14-25 नवंबर तक आयोजित की जा रही है।
• CITES COP19 की बैठक पनामा में 14-25 नवंबर तक आयोजित की जा रही है।
• इस सम्मेलन को विश्व वन्यजीव सम्मेलन के रूप में भी जाना जाता है
• बैठक में जानवरों और पौधों की 600 से अधिक प्रजातियों के भविष्य के बारे में निर्णय लिया जाएगा
• साथ उन नियमों को लागू करने पर विचार किया जाएगा जो वैश्विक स्तर पर वन्यजीवों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को नियमित करते हैं।
CITES के बारे में
पूरा नामः Convention
International Trade in on Endangered Species of Wild Fauna and Flora (वन्य जीवों एवं वनस्पतियों की लुप्तप्राय प्रजातियों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर कन्वेंशन)
यह एक अंतर्राष्ट्रीय समझौता है जिसका पालन राष्ट्र तथा क्षेत्रीय आर्थिक एकीकरण संगठन स्वैच्छिक रूप से करते हैं।
वर्ष 1963 में अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (IUCN) के सदस्यों देशों की बैठक में CITES का मसौदा तैयार किया गया था ! CITES को जुलाई 1975 में लागू किया गया था
वर्तमान में CITES के 183 पक्षकार देश हैं
CITES का सचिवालय जिनेवा स्विट्ज़रलैंड में स्थित है, यह संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम द्वारा प्रशासित किया जाता है।
CITES के पक्षकारों का सम्मेलन सर्वोच्च निर्णायक निकाय होता है और इसमें सभी पक्षकार देश शामिल होते हैं !
यद्यपि CITES अपने पक्षकारों पर कानूनी रूप से बाध्यकारी है परंतु इसे राष्ट्रीय स्तर पर कानून का दर्जा नहीं दिया जाता है !
• इसके परिशिष्ट II एवं III में विभिन्न प्रजातियों को सूचीबद्ध किया गया है और इसमें शामिल प्रजातियों को अत्यधिक दोहन से बचाने हेतु विभिन्न प्रकार के संरक्षण के उपाय किये जाते हैं।
परिशिष्ट 1
L इसमें वे प्रजातियाँ सूचीबद्ध हैं जो सबसे अधिक संकटापन्न स्थिति में हैं
इसमें गोरिल्ला, समुद्री कछुए, अधिकांश ऑर्किड प्रजातियाँ एवं विशाल पांडा शामिल हैं।
वर्तमान में इसमें 931 प्रजातियाँ सूचीबद्ध हैं
परिशिष्ट 2
इसमें ऐसी प्रजातियाँ शामिल हैं जिनके व्यापार को यदि सख्त तरीके से नियंत्रित नहीं किया गया तो ये लुप्तप्राय की श्रेणी में आ सकती हैं।
• अमेरिकी जिनसेंग, पैडलफिश, शेर, अमेरिकी मगरमच्छ, महोगनी एवं कई प्रवाल इसमें शामिल हैं
• वर्तमान में 34,419 प्रजातियों को इसमें सूचीबद्ध किया गया है
परिशिष्ट 3
इसमें किसी पक्षकार के अनुरोध पर प्रजातियों को शामिल किया जाता है
• इनमें वैसी प्रजातियों को शामिल किया जाता है जिनके अत्यधिक दोहन को रोकने के लिये दूसरे देशों के सहयोग की आवश्यकता होती है।