सामान्य परिचय (General Introduction)
सामान्य परिचय (General Introduction) motions of the earth
● पृथ्वी की घूर्णन गति का हमें आभास न होने का मुख्य कारण घूर्णन एवं परिक्रमण में निरंतरता का होना है।
• पृथ्वी के सूर्य के चारों ओर घूमने और धुरी पर घूमने के कई प्रमाण हैं, जैसे- पृथ्वी यदि अपनी धुरी पर नहीं घूमती तो एक ही हिस्से पर हमेशा दिन रहता और दूसरे हिस्से पर हमेशा रात।
● पृथ्वी के सूर्य के चारों ओर घूमने से ही मौसम परिवर्तित होता है। अतः इन सब प्रमाणों से सिद्ध होता है कि पृथ्वी सूर्य के चारों ओर एवं अपनी धुरी पर सतत् रूप से घूमती रहती है।
• दूसरे ग्रहों की भाँति पृथ्वी अपने अक्ष पर लगातार घूमती रहती है। ‘अक्ष’, उत्तरी ध्रुव एवं दक्षिण ध्रुव को मिलाने वाली काल्पनिक रेखा है, जिसके सहारे पृथ्वी घूर्णन करती है।
• पृथ्वी के परिक्रमण कक्ष द्वारा निर्मित तथा पृथ्वी के केंद्र से गुजरने वाले तल को ‘कक्षातल’ या ‘कक्षीयसतह’ कहते हैं। motions of the earth
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• पृथ्वी अपने अक्ष पर 23½° झुकी हुई है और इसका अक्ष इसके कक्षातल से 66%° का कोण बनाता है। ● पृथ्वी का आकार भू-आभ (Geoid) होने के कारण इसके आधे भाग पर सूर्य का प्रकाश पड़ता है अतः आधे भाग पर दिन रहता है, जबकि शेष आधे भाग पर उस समय प्रकाश नहीं पहुँचता है, अतः आधे भाग पर रात रहती है। वाले वृत्त को ‘प्रदीप्ति भी कहा जाता है!
• पृथ्वी पर दिन तथा रात को विभाजित करने वृत्त’ (Circle of illumination) कहते हैं। ● पृथ्वी की दो प्रकार की गतियाँ हैं-
• घूर्णन / परिभ्रमण / दैनिक गति (Rotation) • परिक्रमण / वार्षिक गति (Revolution) घूर्णन (Rotation)
● पृथ्वी का अपने अक्ष के सापेक्ष पश्चिम से पूर्व दिशा की ओर लट्टू की भाँति घूमना ही ‘पृथ्वी का घूर्णन’ कहलाता है। इसे ‘परिभ्रमण गति’ भी कहते हैं।
• पृथ्वी पश्चिम से पूर्व लगभग 1.670 किमी. प्रति घंटे की चाल से 23 घंटे, 56 मिनट व 4 सेकंड में एक घूर्णन पूरा करती है। इसी कारण पृथ्वी पर दिन-रात होते हैं।
• पूरे वर्ष विषुवत् रेखा पर दिन व रातें समान होती हैं, क्योंकि विषुवत रेखा का सूर्य के सापेक्ष कोणीय झुकाव सदैव शून्य होता है।
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घूर्णन/ दैनिक गति के प्रभाव

• दिन और रात का होना।
• सूर्य, चंद्रमा और अंतरिक्ष में उपस्थित अन्य पिंड पूर्व से पश्चिम की ओर पृथ्वी के चारों ओर घूमते दिखाई पड़ते हैं।
• हवाओं और धाराओं की दिशा का बदलना (घूर्णन गति के प्रभाव से कोरिऑलिस बल की उत्पत्ति होती है, जिसके कारण उत्तरी गोलार्द्ध में पवनें अपनी दाईं ओर तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में अपनी बाई ओर मुड़ जाती हैं)।
• ज्वार-भाटा की दैनिक या अर्द्ध-दैनिक आवृत्ति एवं इससे उत्पन्न ज्वारीय तरंगों की दिशा (सीमित तौर पर) पृथ्वी की घूर्णन गति से प्रभावित होती है।
परिक्रमण (Revolution)
• अपने अक्ष पर घूमती हुई पृथ्वी सूर्य के चारों ओर लगभग 107,000 किमी. प्रति घंटा की गति से दीर्घ वृत्ताकार कक्षा में चक्कर लगाती है, इसे पृथ्वी की ‘परिक्रमण गति’ कहते हैं।
• पृथ्वी द्वारा सूर्य की एक परिक्रमा करने में 365 दिन, 5 घंटे, 48 मिनट व 46 सेकंड का समय लगता है, लेकिन सुविधानुसार एक वर्ष में 365 दिन ही माने जाते हैं और लगभग अतिरिक्त 6 घंटे को प्रत्येक चौथे वर्ष (6×4= 24 घंटा = 1 दिन) में जोड़ दिया जाता है, जिसे अधिवर्ष (Leap year) कहते हैं, इसमें कुल 366 दिन होते हैं।
परिक्रमण/वार्षिक गति के प्रभाव
• दिन-रात का छोटा और बड़ा होना! .ऋतु परिवर्तनः
• कर्क और मकर रेखाओं का निर्धारण;
• सूर्य की किरणों का सीधा और तिरछा चमकना; • विषुव तथा उपसौर एवं अपसौर की स्थिति का होना;
• ध्रुवों पर 6 माह का दिन व 6 माह की रात का होना।
ऋतु परिवर्तन ( change of seasons)
ऋतु परिवर्तन (Change of Seasons)
अपने अक्ष पर झुकी हुई पृथ्वी जब सूर्य की परिक्रमा करती है, तो एक ही स्थान पर अलग-अलग समय में सूर्य की किरणों का झुकाव अलग-अलग होता है। भिन्न-भिन्न झुकाव के कारण सूर्य की किरणों के ताप का वितरण बदलता रहता है। इसी वितरण के कारण समय के साथ उस स्थान पर गर्मी अथवा सर्दी की ऋतु बन जाती है। पृथ्वी के परिक्रमण में चार मुख्य अवस्थाएँ आती है, जो निम्न हैं-
21 जून की स्थिति
• 21 मार्च के बाद सूर्य उत्तरायण होने लगता है फलतः उत्तरी गोलार्द्ध में दिन की अवधि बढ़ने लगती है, जिससे ‘ग्रीष्म ऋतु’ का आगमन होता है।
• 21 मार्च से सूर्य उत्तरी ध्रुव को प्रकाशित करना प्रारंभ कर देता है और 23 सितंबर तक उत्तरी ध्रुव प्रकाशित होता रहता है, इसलिये उत्तरी ध्रुव पर लगातार 6 महीने का दिन होता है। 21 मार्च से 21 जून की अवधि को ‘उत्तरायण’ कहते हैं।
• 21 जून को सूर्य कर्क रेखा (23½° उत्तरी अक्षांश) पर लंबवत् होता है। इस दिन उत्तरी गोलार्द्ध में दिन सबसे बड़ा तथा रात सबसे छोटी होती है। इस स्थिति को ‘ग्रीष्म अयनांत’ (Summer Solstice) या ‘उत्तर अयनांत’ भी कहते हैं। motions of the earth
• इस स्थिति में पृथ्वी का दक्षिणी ध्रुव लगातार 6 महीने तक अंधेरे में रहता है फलतः दक्षिणी ध्रुव पर शीत ऋतु होती है।
22 दिसंबर की स्थिति
22 दिसंबर की स्थिति
• 23 सितंबर से 21 मार्च तक पृथ्वी का दक्षिणी ध्रुव प्रकाशित होता रहता है। इससे दक्षिणी ध्रुव पर लगातार 6 महीने का दिन होता है। इसके अंतर्गत 23 सितंबर से 22 दिसंबर की अवधि को ‘दक्षिणायन’ कहते हैं।
• 22 दिसंबर को सूर्य मकर रेखा (234° दक्षिणी अक्षांश) पर लंबवत् होता है। इस दिन दक्षिणी गोलार्द्ध में दिन सबसे बड़ा और रात सबसे छोटी होती है।
• इस समय सूर्य की सीधी किरणें मकर रेखा पर पड़ती हैं, परिणामस्वरूप दक्षिणी गोलार्द्ध में अधिक प्रकाश प्राप्त होता है, इसलिये दक्षिणी गोलार्द्ध में लंबे दिन और छोटी रातों वाली ग्रीष्म ऋतु होती है, जबकि उत्तरी गोलार्द्ध में विपरीत स्थिति रहती है क्योंकि उत्तरी ध्रुव अप्रकाशित रहने के कारण कम ऊष्मा प्राप्त करता है, फलतः यहाँ शीत ऋतु रहती है। इस अवस्था को ‘शीत अयनांत’ (Winter Solstice) अथवा ‘दक्षिण अयनांत’ कहते हैं।
किरणों का प्रभाव
जब लंबवत् किरणें पृथ्वी के किसी भाग पर पड़ती हैं तो इससे पृथ्वी द्वारा ऊष्मा का अवशोषण अधिक होता हैं तथा जब सूर्य की तिरछी किरणें पृथ्वी के किसी भाग पर पड़ती हैं तो ऊष्मा का अवशोषण कम होता है। विदित है कि दोपहर अधिक गर्म तथा सुबह एवं शाम में कम गर्मी होती है, क्योंकि दोपहर में सूर्य की किरणें सतह पर सीधी पड़ती हैं, जबकि सुबह एवं शाम को तिरछी पड़ती हैं।
21 मार्च एवं 23 सितंबर
• इन दोनों स्थितियों में सूर्य विषुवत रेखा पर लंबवत् चमकता है। अतः इस समय समस्त अक्षांश रेखाओं का आधा भाग सूर्य का प्रकाश प्राप्त करता है, इसलिये इन दोनों तिथियों को समस्त विश्व में दिन और रात बराबर होते हैं। परिणामस्वरूप इस स्थिति को ‘विषुव (Equinox)’ कहते हैं। motions of the earth
• 23 सितंबर को उत्तरी गोलार्द्ध में शरद ऋतु होती है तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में बसंत ऋतु होती है, जबकि 21 मार्च को स्थिति इसके .
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