प्राण और दैहिक स्वतंत्रता (Protection of Life and Personal Liberty)
- Protection of Life and Personal Liberty प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता का मूलाधिकार सभी मौलिक अधिकारों में सर्वश्रेष्ठ है।
- अनुच्छेद-21 द्वारा प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता को सुनिश्चित किया गया है। अनुच्छेद 21 के अनुसार किसी व्यक्ति को उसके प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता से विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार ही वंचित किया जायेगा, अन्यथा नहीं। अर्थात् कोई व्यक्ति अपने प्राण तथा शरीरिक स्वतंत्रता से तभी वंचित किया जायेगा जबकि उसके लिए कोई विधिक उपबन्ध हो। Protection of Life and Personal Liberty
- ध्यातव्य है कि अनु. 21 के तहत व्यक्ति शब्द का प्रयोग किया गया है; अतः इसका संरक्षण नागरिक एवं विदेशी (अनागरिक) सभी व्यक्तियों को प्राप्त है
अमेरिकी संविधान के अन्तर्गत 5 वें तथा 14वें संशोधन द्वारा प्रदान किया गया है।
- 5वें संशोधन के अनुसार कोई भी व्यक्ति सम्यक् विधि प्रक्रिया के बिना अपनी दैहिक स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया जायेगा। Protection of Life and Personal Liberty
- अमेरिकी न्यायालयों ने सम्यक विधि प्रक्रिया (Due Process of Law) का अत्यन्त विस्तृत अर्थान्वयन करते हुए उसे नैसर्गिक न्याय (Natural Jus- tice) के समतुल्य माना है। यहाँ अमेरिकी संविधान में प्रदत्त दैहिक स्वतंत्रता भारतीय संविधान की अपेक्षा विस्तृत है, क्योंकि भारतीय संविधान में दैहिक स्वतंत्रता का अधिकार विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अधीन है। Protection of Life and Personal Liberty
- अतः विधानमण्डल किसी व्यक्ति को उसके प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता से विधि का निर्माण कर वंचित कर सकती है। ज्ञातव्य है कि ए० के० गोपालन बनाम मद्रास राज्य (1952) के वाद में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि अनु. 21 केवल कार्यपालिकीय कृत्य के विरुद्ध संरक्षण प्रदान करता है विधान मण्डल के विरुद्ध नहीं। विधान मण्डल कोई विधि बनाकर किसी व्यक्ति को उसके प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता से वंचित कर सकता है। Protection of Life and Personal Liberty
विधानमण्डल द्वारा निर्मित विधि को नैसर्गिक नियमों के अनुरूप होना आवश्यकः नहीं है। Protection of Life and Personal Liberty
- किन्तु मेनका गाँधी बनाम भारत संघ (1978) के वाद में सर्वोच्च न्यायालय ने ए. के. गोपालन के निर्णय को उलट दिया और अनुच्छेद-21 को एक नया आयाम देते हुए उसके क्षेत्र को अत्यन्त विस्तृत कर दिया। Protection of Life and Personal Liberty
- इसमें उच्चतम न्यायालय ने धारित किया कि विधान मण्डल द्वारा पारित किसी विधि के अधीन विहित प्रक्रिया जो किसी व्यक्ति को उसके प्राण और दैहिक स्वतंत्रता से वंचित करती है उचित, ऋजु और युक्तियुक्त (Fair, Just and reasonable) अर्थात् प्राकृतिक न्याय के सिद्धान्त के अनुरूप होनी चाहिए।
- उसे अयुक्तियुक्त और मनमाना नहीं होना चाहिए। इस निर्णय के बाद अब भारतीय संविधान तथा अमेरिकी संविधान द्वारा प्रदत्त दैहिक स्वतंत्रता लगभग समरूप है। अतः वर्तमान स्थिति के अनुसार अनुच्छेद-21 विधायिका तथा कार्यपालिका दोनों के विरुद्ध संरक्षण प्रदान करता है।
इस प्रकार किसी व्यक्ति को उसकी दैहिक स्वतंत्रता से वंचित करने वाली विधि में निम्नलिखित बातें होनी चाहिए;
(i) विधि में प्रक्रिया विहित होनी चाहिए। Protection of Life and Personal Liberty
(ii) प्रक्रिया ऋजु, न्यायपूर्ण और युक्तियुक्त होनी चाहिए (iii) विधि अनुच्छेद-14 तथा 19 के अनुरूप होना चाहिए।
मेनका गाँधी के निर्णय के पश्चात सर्वोच्च न्यालय ने अनुच्छेद- 21 का उदार निर्वचन आरम्भ किया और इसके अन्तर्गत उन सभी बातों को शामिल कर लिया जो जीवन को जीनें योग्य बनाती हैं। इस प्रकार इसके अन्तर्गत अनुच्छेद-19 द्वारा प्रदत्त सभी स्वतंत्रतायें तथा ऐसी अन्य दैहिक स्वतंत्रतायें जो अनुच्छेद-19 में सम्मिलित नहीं हैं, आ जाती हैं। Protection of Life and Personal Liberty
* उदार निर्वचन के कारण अनुच्छेद-21 एक प्रकार से अवशिष्ट अनुच्छेद- सा हो गया है। इसके अन्तर्गत समय- समय पर न्यायालय द्वारा निम्नलिखित अधिकारों को प्राण एवं दैहिक स्वतन्त्रता के अन्तर्गत मूल अधिकार के रूप में मान्यता प्रदान किया गया है। Protection of Life and Personal Liberty
विदेश जाने का अधिकार (MPPCS-2010)- मेनका गाँधीबनाम भारत संघ (1978) के वाद में विदेश भ्रमण का अधिकार एक मूल अधिकार घोषित किया गया तथा कहा गया कि प्राण का अधिकार केवल भौतिक अस्तित्व तक ही सीमित नहीं है, वरन् इसमें मानव गरिमा को बनाये रखते हुए जीने का अधिकार है। अतः दैहिक स्वतंत्रता में संचरण की स्वतंत्रता (Right to move) अर्थात् इच्छानुसार कभी भी तथा कहीं भी जानें की स्वतंत्रता शामिल है। Protection of Life and Personal Liberty
एकान्तता के अधिकार (Right of Privacy) राजगोपाल बनाम तमिलनाडु राज्य (1994) SC जीविकोपार्जन का अधिकार (ओलेगा तेलीस बनाम बाम्बे म्युनिसिपल कारपोरेशन) सड़क पर व्यापार करना अनुच्छेद-21 के अन्तर्गत एक मूल अधिकार नहीं है बल्कि यह Protection of Life and Personal Liberty
अनुच्छेद-19 (छ) के अधीन एक मूल अधिकार है।
- शिक्षा पानें का अधिकार* (मोहिनी जैन बनाम कर्नाटक राज्य; 1992)
- निःशुल्क विधिक सहायता* (एम.एम. हासकाट बनाम महाराष्ट्र : 1978)
- चिकित्सा सहायता पाने का अधिकार-परमानन्द कटारा बनाम भारत संघ (1989)
* के मामले में उच्चतम न्यायालय ने सरकारी तथा प्राइवेट दोनों प्रकार के अस्पतालों में कार्यरत चिकित्सकों पर, अनुच्छेद 21 के अधीन यह कर्त्तव्य आरोपित किया कि वह घायल व्यक्ति को शीघ्रातिशीघ्र चिकित्सकीय सहायता प्रदान करें तथा विधिक प्रक्रिया अर्थात् पुलिस कार्यवाही की प्रतीक्षा किये बिना घायल व्यक्ति के प्राण की रक्षा करें (UPCS 2005)। Protection of Life and Personal Liberty
चमेली सिंह बनाम उ. प्र. (1998) के मामले में अनु0 21 के तहत आश्रय का अधिकार (Right to Shelter) एक मूल अधिकार माना गया। (UPPCS-2005)
निःशुल्क खाद्य सामाग्री पाने का अधिकार- पी.यू.सी एन. बनाम भारत (2000) के बाद में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि ऐसे लोग जो भूख से पीड़ित हैं और खाद्य सामाग्री खरीदने में असमर्थ हैं उन्हें अनुच्छेद-21 के अन्तर्गत राज्य से निःशुल्क खाद्य सामाग्री प्राप्त करने का मौलिक अधिकार है। Protection of Life and Personal Liberty
- सुभाष कुमार बनाम बिहार राज्य (1991) के मामले में य कहा गया कि प्रदूषण मुक्त जल और वायु के उपयोग का अधिकार अनुच्छेद 21 के अन्तर्गत प्राण के अधिकार में शामिल हैं। Protection of Life and Personal Liberty
- फोन टेप करना अनुच्छेद 21 के अन्तर्गत दैहिक स्वतंत्रता में सम्मिलित एकांतता के अधिकार का अतिक्रमण है।
- सुचिता श्रीवास्तव बनाम चण्डीगढ़ एडमिनिस्ट्रेशन (2010) में उच्चतम न्यायालय ने धारित किया कि कोई महिला अपने बच्चे को पैदा करे या नहीं, अनुच्छेद 21 के अन्तर्गत यह उसका अधिकार है। अतः कोई महिला मैथुन से इंकार कर सकती है तथा गर्भ निरोध का कोई भी साधन अपना सकती है।
महाराष्ट्र राज्य बनाम श्रीपति दूबल (1987)
महाराष्ट्र राज्य बनाम श्रीपति दूबल (1987) के मामले में सर्वप्रथम बम्बई हाईकोर्ट ने कहा था कि अनु. 21 के तहत जीने के अधिकार' (Right to live) में मरने का अधिकार(Right to die) भी शामिल है, तथा भारतीय दण्ड संहिता (I.P.C.) की धारा 309, जो आत्महत्या' को अपराध घोषित करती है, असंवैधानिक है।
- पी.रतीनाम बनाम भारत संघ (1994) के मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने भी कहा कि- अनु- 21 के तहत जीने के अधिकार में मरने का अधिकार शामिल है। ग्यान कौर बनाम पंजाब (1996) राज्य के बाद में उच्चतम न्यायालय ने पी० रतीनाम के निर्णय को पलटते हुए कहा कि अनुच्छेद 21 के अन्तर्गत जीवन के अधिकार में मरने का अधिकार शामिल नहीं है। Protection of Life and Personal Liberty
धूमपान का निषेध-मुरली देवड़ा बनाम भारत संघ के मामले में उच्चतम न्यायालय ने सार्वजनिक स्थानों पर धूम्रपान को अनु. 21 द्वारा प्रदत्त मूल अधिकार का उलंघन माना तथा राज्यों को सार्वजनिक स्थानों पर धूम्रपान निषेध का निर्देश दिया। (UPPCS-2005)
विशाखा बनाम स्टेट आफ राजस्थान के वाद में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा यह धारित किया गया कि महिला कर्मियों का यौन उत्पीड़न लैंगिक समानता प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता के अधिकारों के अतिक्रमण की कोटि में आता (UPPCS-06) आम जनता के समक्ष फाँसी देने के विरुद्ध संरक्षण । Protection of Life and Personal Liberty
- ( महान्यायवादी बनाम लिच्छमा देवी 1996)
- पुलिस अभिरक्षा में मृत्यु के विरुद्ध संरक्षण (नीलवती वोहरा) बनाम उड़ीसा राज्य : 1993)
- हथकड़ी लगाने के विरुद्ध संरक्षण (प्रेमशंकर बनाम दिल्ली प्रशासन 1980)
- गर्भावस्था के दौरान लिंग परीक्षण महिला के जीवन के अधिकार का उल्लंघन है। (विजय शर्मा बनाम भारत संघ: 2008).
- एकान्त कारावास के विरुद्ध संरक्षण (सुनील बत्रा बनाम दिल्ली प्रशासन)
- निजता का अधिकार (सर्वोच्च न्यायालय की 9 सदस्यीय खण्डपीठ 24 अगस्त 2017)
- परोक्ष इच्छामृत्यु (पैसिव यूथेनिशिया) अर्थात् सम्मान से मरने का अधिकार, मौलिक अधिकार है
(कामन काज गैर सरकारी संगठन की याचिका पर सर्वोच्च न्यायालय के पांच सदस्यीय पीठ का फैसला 9 मार्च 2018)
- 8 मार्च, 2018 (हादिया बाद) तथा 27 मार्च, 2018 को शक्ति वाहिनी (गैर सरकारी संगठन बनाम भारत संघ) के प्रकरण में सुप्रीम कोर्ट ने निर्णय देते हुए कहा कि अपनी पसंद के व्यक्ति से विवाह अथवा जीवन साथी चुनने का अधिकार अनु. 21 के तहत मूल अधिकार है। Protection of Life and Personal Liberty
शिक्षा का अधिकार (Right to Education) (IAS – 2019)
शिक्षा मनुष्य के लिए नितान्त आवश्यक है, किन्तु आरम्भ में, संविधान में शिक्षा को मूल अधिकार के अन्तर्गत स्थान नहीं दिया गया था, यद्यपि सर्वोच्च न्यायालय ने मोहिनी जैन के मामले में
- शिक्षा के अधिकार को अनुच्छेद 21 के अन्तर्गत एक मूल अधिकार घोषित किया था। इस कमी को दूर करते हुए संसद ने 86वें संविधान संशोधन अधिनियम 2002 द्वारा अनुच्छेद 21- क के अन्तर्गत शिक्षा के अधिकार को मौलिक अधिकार का दर्जा प्रदान कर दिया।
- अनुच्छेद 21-क, के अनुसार राज्य 6 से 14 वर्ष की आयु के सभी बालकों के लिए निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा का उपबन्धकरेगा। ध्यातव्य है कि इस अधिकार को 1 अप्रैल 2010 से प्रभावी (लागू) किया गया है। Protection of Life and Personal Liberty
- 86 वें संशोधन द्वारा अनुच्छेद 45 के स्थान पर नया अनुच्छेद प्रतिस्थापित कर राज्यों को यह निर्देश दिया गया है कि वह 6 वर्ष से कम आयु के बच्चों की देख-रेख तथा शिक्षा देने का प्रयास करेगा। साथ ही इस संशोधन द्वारा अनुच्छेद 51 (क) में खण्ड (ट) के तहत् 11वाँ मूल कर्त्तव्य भी जोड़ा गया है।
- इसके अनुसार प्रत्येक माता-पिता या अभिभावक का यह मूल कर्तव्य है कि वह अपने बालक या प्रतिपाल्य के लिए 6-14 वर्ष की बीच शिक्षा का अवसर प्रदान करेगा। आयु के मई 2014 को सर्वोच्च न्यायालय ने एनीमल वेलफेयर बोर्ड की याचिका पर सुनवायी करते हुए अनु. 21 में प्रयुक्त शब्द जीवन को विस्तारित करते हुए जानवरों के जीवन को भी इसमें सम्मिलित किया गया, साथ ही यह भी स्पष्ट किया कि जानवरों को भी उत्पीड़न मुक्त जीवन जीने का अधिकार है। इसी के आधार पर जल्ली कुट्टी खेल तथा बैलगाड़ी दौड़ पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। Protection of Life and Personal Liberty
Reading your article helped me a lot and I agree with you. But I still have some doubts, can you clarify for me? I’ll keep an eye out for your answers.