Volcano;ज्वालामुखी अभी हाल ही में घटमना घटी UPSC,PCS,UPPSC,SSC

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ज्वालामुखी से संबन्धित एंव परिभाषा

Volcano UPSC/PCS/UPSSSC -ज्वालामुखी का तात्पर्य उस छिद्र (Opening) अथवा दरार (Repture) से है जिसका सम्बन्ध पृथ्वी के आन्तरिक भाग से होता है, और जिसके माध्यम से तप्त गैस, तरल लावा, राख, जलवाष्प आदि का निर्गमन होता है। ज्वालामुखी क्रिया के अन्तर्गत मैग्मा के निकलने से लेकर धरातल या उसके अन्दर विभिन्न रूपों में इसके ठण्डा होने की प्रक्रिया शामिल होती है। Volcano

(i) धरातल के नीचे भूगर्भ में मैग्मा के शीतल होकर जमने की प्रक्रिया, जिससे बैथोलिथ फैकोलिथ, लोपोलिथ, सिल तथा डाइक
स्वरूप की अन्तः स्थलाकृतियों का निर्माण होता है। इसका विवेचन चट्टानों के अध्याय में किया गया है। Volcano

(ii) दूसरे में धरातल के ऊपर घटित होने वाली क्रियाएँ सम्मिलित होती हैं। Volcano

इसमे प्रमुख जो निम्नवत हैं ।

ज्वालामुखी (Volcano) धरातलीय प्रवाह (Fissure Flows) गर्म जल के स्रोत (Hot Spring)गेसर (Geyser) धुँआरे (Fumaroles) इस व्याख्या से यह स्पष्ट हो जाता है कि ज्वालामुखी क्रिया एक ज्वालामुखी से निकलने वाले पदार्थों को तीन श्रेणियों में विभक्तकिया जाता है। Volcano

(i) गैस तथा जलवाष्प- ज्वालामुखी उद्भेदन के समय सर्वप्रथम गैसें एवं जलवाष्प बाहर आते हैं। इसमें जलवाष्प की मात्रा सर्वाधिक (60-90%) होती है* । अन्य गैसों में CO,, नाइट्रोजन (N), हाइड्रोजन (H), हाइड्रोजन क्लोराइड (Hcl), कार्बन मोनोआक्साइड (CO) हाइड्रोजन फ्लुओराइड (HF), हीलियम (He) एवं सल्फर डाइऑक्साइड आदि प्रमुख होती हैं। 

(ii) विखण्डित पदार्थ — इसमें धूल एवं राख से बने चट्टानी टुकड़े (टफ); मटर के दाने के आकार वाले टुकड़े (लैपिली)*; कुछ इंच से लेकर कई फीट तक के व्यास वाले बड़े-बड़े चट्टानी टुकड़े बाम्ब कोणाकृत अपेक्षाकृत बड़े आकार के टुकड़े ब्रेसिया* आदि बाहर धरातल पर निकलते हैं। Volcano

(iii) लावा (Lava)— ज्वालामुखी उद्गार के समय भूगर्भ में स्थित पदार्थ को मैग्मा कहते हैं; जब मैग्मा धरातल पर निस्सृत होता है तो उसे लावा की संज्ञा दी जाती है; धरातल पर लावा के ठंडा होने के बाद वह आग्नेय चट्टान की उपमा धारण करता है। Volcano

सिलिका आधार पर लावा दो प्रकार के होते हैं ।

(a) एसिड लावा— यह अत्यन्त गाढ़ा तथा चिपचिपा होता है, जिसमें सिलिका की मात्रा अधिक होती है। अतः यह धरातल पर दूर तक फैलकर क्रेटर के आसपास गुम्बदाकार शंकु का निर्माण करता है। – स्ट्राम्बोली (इटली) एवं पाई-डी-डोम (फ्रांस) आदि।

ज्वालामुखी से संबन्धित एंव परिभाषा
Volcano UPSC/PCS/UPSSSC -ज्वालामुखी का तात्पर्य उस छिद्र (Opening) अथवा दरार (Repture) से है जिसका सम्बन्ध पृथ्वी के आन्तरिक भाग से होता है, और जिसके माध्यम से तप्त गैस, तरल लावा, राख, जलवाष्प आदि का निर्गमन होता है। ज्वालामुखी क्रिया के अन्तर्गत मैग्मा के निकलने से लेकर धरातल या उसके अन्दर विभिन्न रूपों में इसके ठण्डा होने की प्रक्रिया शामिल होती है। Volcano

(i) धरातल के नीचे भूगर्भ में मैग्मा के शीतल होकर जमने की प्रक्रिया, जिससे बैथोलिथ फैकोलिथ, लोपोलिथ, सिल तथा डाइक
स्वरूप की अन्तः स्थलाकृतियों का निर्माण होता है। इसका विवेचन चट्टानों के अध्याय में किया गया है। Volcano

(ii) दूसरे में धरातल के ऊपर घटित होने वाली क्रियाएँ सम्मिलित होती हैं। Volcano

इसमे प्रमुख जो निम्नवत हैं ।
ज्वालामुखी (Volcano) धरातलीय प्रवाह (Fissure Flows) गर्म जल के स्रोत (Hot Spring)गेसर (Geyser) धुँआरे (Fumaroles) इस व्याख्या से यह स्पष्ट हो जाता है कि ज्वालामुखी क्रिया एक ज्वालामुखी से निकलने वाले पदार्थों को तीन श्रेणियों में विभक्तकिया जाता है। Volcano

(i) गैस तथा जलवाष्प- ज्वालामुखी उद्भेदन के समय सर्वप्रथम गैसें एवं जलवाष्प बाहर आते हैं। इसमें जलवाष्प की मात्रा सर्वाधिक (60-90%) होती है* । अन्य गैसों में CO,, नाइट्रोजन (N), हाइड्रोजन (H), हाइड्रोजन क्लोराइड (Hcl), कार्बन मोनोआक्साइड (CO) हाइड्रोजन फ्लुओराइड (HF), हीलियम (He) एवं सल्फर डाइऑक्साइड आदि प्रमुख होती हैं।

(ii) विखण्डित पदार्थ — इसमें धूल एवं राख से बने चट्टानी टुकड़े (टफ); मटर के दाने के आकार वाले टुकड़े (लैपिली)*; कुछ इंच से लेकर कई फीट तक के व्यास वाले बड़े-बड़े चट्टानी टुकड़े बाम्ब कोणाकृत अपेक्षाकृत बड़े आकार के टुकड़े ब्रेसिया* आदि बाहर धरातल पर निकलते हैं। Volcano

(iii) लावा (Lava)— ज्वालामुखी उद्गार के समय भूगर्भ में स्थित पदार्थ को मैग्मा कहते हैं; जब मैग्मा धरातल पर निस्सृत होता है तो उसे लावा की संज्ञा दी जाती है; धरातल पर लावा के ठंडा होने के बाद वह आग्नेय चट्टान की उपमा धारण करता है। Volcano

सिलिका आधार पर लावा दो प्रकार के होते हैं ।
(a) एसिड लावा— यह अत्यन्त गाढ़ा तथा चिपचिपा होता है, जिसमें सिलिका की मात्रा अधिक होती है। अतः यह धरातल पर दूर तक फैलकर क्रेटर के आसपास गुम्बदाकार शंकु का निर्माण करता है। – स्ट्राम्बोली (इटली) एवं पाई-डी-डोम (फ्रांस) आदि।

(b) बेसिक लावा — यह हल्का, पतला, धरातल पर शीघ्रता से फैलने वाला एवं कम सिलिका युक्त लावा होता है। अतः इससे चपटा या शील्ड शंकु का निर्माण होता है। जैसे- मोनालोआ शंकु (हवाई द्वीप)। ध्यातव्य है कि वर्तमान समय में मैग्मा, लावा तथा आग्नेय चट्टानों का वर्गीकरण रासायनिक एवं खनिज संगठन के आधार पर किया गया है।

(i) फेल्सिक (Felsic)- इसमें सिलिका प्रधान खनिज क्वार्ट्ज तथा फेल्सफार की अधिकता होती है, जो रंग में हल्के होते हैं। (ii) मैफिक (Malic)— इस समूह के खनिज में मैग्नेशियम व लोह तत्व की प्रधानता
तथा सिलिका की अपेक्षाकृत न्यूनता होती है, जो रंग में गहरे होते हैं। जैसे— पायरॉक्सींस, एम्फीबोल्स तथा ऑल्वीन आदि

(iii) अल्ट्रामैफिक (Ultramafic)— फेल्सिक व मैफिक के मध्यस्थ गुणों वाले खनिजों को अल्ट्रामैफिक कहा जाता है। इनमें सिलिकान व एल्युमिनियम की मात्रा अधिक होती है।

ज्ञातव्य है कि फेल्सिक,अल्ट्रामैफिक एवं मैफिक के अन्तर्गत क्रमशः ग्रेनाइट, डायोराइट व गैंब्रो अंतर्जात लावा के और रायोलाइट, एंडेसाइट एवं बैसाल्ट क्रमशः बहिर्जात लावा के उदाहरण है। Volcano

• कि मड वल्केनो (Mud Volcano) क्या है? मड वल्केनो ऐसी प्राकृतिक रचना है, जिनमें से भूउत्सर्जित गैसों और कीचड़नुमा गाद जैसे तरल पदार्थों का उत्सर्जन होता है। मड वल्केनो पृथ्वी पर मौजूद टेक्टोनिक प्लेटों को अलग करने वाले सीमावर्ती क्षेत्रों

(Subdiction Zone) में या ज्यादातर इसके आस-पास पाये जाते हैं। USA, कनाडा, ताइवान, इटली, ईरान, पाकिस्तान, रोमानिया, चीन, जापान, इण्डोनेशिया एवं कोलंबिया सहित ये विश्व के अनेक देशों में पाये गये हैं परन्तु ये भारत में सिर्फ अण्डमान समूह के बाराटांग नामक द्वीप में पाये जाते हैं। ध्यातव्य है, कि विश्व का सबसे बड़ा मड;लूसी इंडोनेशिया में है।

ज्वाला मुखी के अंग
लावा जब ज्वालामुखी छिद्र के चारों तरफ क्रमशः जमा होने लगता है तो ज्वालामुखी शंकु (Volcanic Cone) का निर्माण होता है। जब जमाव अधिक हो जाता है तो शंकु काफी बड़ा हो जाता है तथा पर्वत का रूप धारण कर लेता है। इस प्रकार के शंकु को ज्वालामुखी पर्वत (Volcanic Mountain ) कहते हैं। इस पर्वत के ऊपर लगभग बीच में एक छिद्र होता है, जिसे ज्वालामुखी छिद्र (Volcanic Vent) कहते हैं। इस छिद्र का धरातल के नीचे भूगर्भ से सम्बन्ध एक पतली नली से होता है। इस नली को ज्वालामुखी नली (Volcanic Pipe ) कहते हैं। जब ज्वालामुखी का छिद्र विस्तृत हो जाता है तो उसे ज्वालामुखी का मुख (Volcanic Crater) कहते हैं। जब घंसाव या अन्य कारण से ज्वालामुखी का विस्तार अत्यधिक हो जाता है। तो उसे काल्डेरा (Caldera) कहते हैं। Volcano

ज्वालामुखी के प्रकार
विभिन्न आधारों पर ज्वालामुखी को अधोलिखित प्रकार से वर्गीकृत किया गया है। यथा—

(A) सक्रियता के आधार पर ज्वालामुखी उद्गारों के बीच अवकाश के आधार पर ज्वालामुखी को तीन श्रेणियों में विभक्त किया गया है।
(1) सक्रिय ज्वालामुखी (Active Volcano) — ऐसे ज्वालामुखी जिनके मुख से सदैव धूल, धुआं, वाष्प, गैसें, राख, चट्टानखण्ड, लावा, आदि पदार्थ बाहर निकलते रहते हैं। सक्रिय ज्वालामुखी कहलाते हैं। वर्तमान में इनकी संख्या 500 से अधिक है। भारत में एकमात्र सक्रिय ज्वालामुखी अण्डमान-निकोबार द्वीप समूह के बैरन द्वीप में है।
विश्व के कुछ प्रमुख सक्रिय ज्वालामुखी निम्नवत है
• हवाई द्वीप (USA) – किलायू *
• पापुआ न्यूगिनी लांगिला एवं बागाना *
• इण्डोनेशिया समेरू (जावा) *, मेरापी* (सर्वाधिक सक्रिय), , दुकोनो*
• तान्ना द्वीप (वनुआतु) – यासुर* (विगत् 800 वर्षों से सक्रिय)
• सिसली द्वीप का • माउण्ट एटना* – लिपारी द्वीप का – स्ट्राम्बोली*
• इक्वेडोर का – कोटोपैक्सी*
• अंडमान निकोबार के बैरन द्वीप में* –
• हवाई द्वीप का मौनालोवा * (UPPSC : 05, 14)
• अर्जेन्टीना चिली की सीमा पर स्थित ओजोस डेल सलाडो*
अंटार्कटिका -रास द्वीप पर स्थित माउण्टइरेबस
(2) प्रसुप्त ज्वालामुखी (Dormant Volcano) — ऐसे ज्वालामुखी जिसमें निकट अतीत में उद्गार नहीं हुआ है, लेकिन जिसमें कभी भी उद्गार हो सकता है। प्रसुप्त ज्वालामुखी की संज्ञा से जाने जाते हैं। जैसे—
• इटली का विसुवियस*
• जापान का फ्यूजीयामा*
• इंडोनेशिया का – क्राकाटाओ*
अण्डमान-निकोबार का – नारकोंडम द्वीप में
(3) शान्त ज्वालामुखी (Extinct Volcano)- वैसा ज्वालामुखी जिसमें ऐतिहासिक काल से कोई उद्गार नहीं हुआ है और जिसमें पुनः
उद्गार होने की सम्भावना नहीं हो। जैसे—
• ईरान का देमबंद
• पाकिस्तान- कोह सुल्तान • म्यांमार का माउन्ट पोपा
• तंजानिया का – किलिमंजारो*
• इक्वेडोर का – चिम्बराजो
• एण्डीज पर्वत श्रेणी का – एकांकागुआ
(B) उद्गार के अनुसार — ज्वालामुखी का उद्गार प्रायः दो = रूपों में होता है यथा-
(1) केन्द्रीय उद्भेदन (Central Eruption ) – जब
ज्वालामुखी उद्भेदन किसी एक केन्द्रीय मुख (vent) से भारी धमाके के साथ होता है तो उसे केन्द्रीय उद्भेदन कहते हैं। यह विनाशात्मक प्लेटो के किनारों के सहारे होता है।* ये कई प्रकार के होते हैं। यथा- हवाई तुल्य, स्ट्राम्बोली तुल्य, वलकेनियन तुल्य, पीलियन तुल्य तथा विसुवियस तुल्य। इनमें पीलियन प्रकार के ज्वालामुखी सबसे अधिक विनाशकारी होते हैं तथा इनका उद्गार सबसे अधिक विस्फोटक एवं भयंकर होता है। जैसे— पश्चिमी द्वीपसमूह के मार्टिनिक द्वीप का पीली (Pelee) ज्वालामुखी, सुण्डा जलडमरूमध्य का क्राकाटोवा ज्वालामुखी तथा फिलीपाइन द्वीप समूह का माउण्ट ताल का भयंकर उद्भेदन । Volcano

(2) दरारी उद्भेदन (Fis sure Eruption)— भू-गर्भिक हलचलों से भूपर्पटी की शैलों में दरारें पड़ जाती हैं। इन दरारों से लावा धरातल पर प्रवाहित होकर निकलता है जिसे दरारी उद्भेदन कहते हैं। यह रचनात्मक प्लेट-किनारों के सहारे होता है। * इस प्रकार के उद्गार क्रीटैशियस युग में बड़े पैमाने पर हुए थे। जिससे लावा पठारों का निर्माण हुआ था। Volcano

ज्वालामुखी का विश्व वितरण
प्लेट विवर्तनिकी (Plate Tectonic) के आधार पर प्लेट किनारों के परिवेश में ज्वालामुखियों के क्षेत्र का वितरण वर्तमान समय में सर्वाधिक मान्य संकल्पना है। विश्वस्तर पर अधिकांश सक्रिय ज्वालामुखी प्लेट की सीमाओं के साथ सम्बन्धित हैं। लगभग 15 प्रतिशत ज्वालामुखी रचनात्मक प्लेट किनारों के सहारे तथा 80 प्रतिशत विनाशी प्लेट किनारों के सहारे पाये जाते हैं। * इनके अलावा कुछ ज्वालामुखी का उद्भेदन प्लेट के आन्तरिक भाग (Intra-Plate Region) में भी होता है।

(1) परिप्रशान्त महासागरीय मेखला (Circum Pacific Relt) – प्रशान्त महासागर में स्थित द्वीपों और उसके चारों ओर तरीय भाग में ज्वालामुखियों की संख्या अत्यधिक पायी जाती है। यहाँ जा विनाशात्मक प्लेट किनारों के सहारे ज्वालामुखी मिलते हैं। विश्व स के ज्वालामुखियों का लगभग 2/3 भाग प्रशान्त महासागर के दोनों तटीय भागों, द्वीप चापों तथा समुद्री द्वीपों के सहारे पाया जाता है। है इसे ;प्रशान्त महासागर का अग्निवलय; (Fire Ring of the Pacific Ocean) कहते हैं। यह पेटी अंटार्कटिका के माउन्ट इरेबस से शुरू होकर दक्षिण अमेरिका के एंडीज पर्वतमाला व उत्तर अमेरिका के रॉकी पर्वतमाला का अनुसरण करते हुए अलास्का, पूर्वी रूस, जापान, फिलीपींस आदि द्वीपों से होते हुए ;मध्य महाद्वीपीय पेटी; में मिल है। Volcano

मध्य महाद्वीपीय पेटी
(2) मध्य महाद्वीपीय पेटी (Mid-Continental Belt)— इस मेखला के अधिकांश ज्वालामुखी विनाशी प्लेट किनारों के सहारे आते हैं क्योंकि यूरेशियन प्लेट तथा अफ्रीकन एवं इण्डियन प्लेट का अभिसरण होता है। यह यूरेशिया महाद्वीप के मध्यवर्ती भागों में नवीन वलित पर्वतों के सहारे पूर्व से पश्चिम को फैली हुई है। यह आइसलैण्ड से प्रारम्भ होकर स्कॉटलैण्ड होती हुई अफ्रीका के कैमरून पर्वत की ओर जाती है। कनारी द्वीप पर इसकी दो शाखाएँ हो जाती हैं—

एक पश्चिम की ओर और दूसरी पूर्व की ओर। पूर्व की ओर वाली शाखा स्पेन, इटली, सिसली, तुर्की, काकेशिया, आरमेनिया, ईरान, अफगानिस्तान, पाकिस्तान, भारत, म्यांमार और मलेशिया होती हुई इण्डोनेशिया तक चली जाती है। इसके अतिरिक्त अरब में जार्डन की भ्रंश घाटी एवं लाल सागर होती हुई एक श्रृंखला अफ्रीका की विशाल भ्रंश घाटी तक फैली हुई है। पश्चिम की ओर वाली शाखा कनारी द्वीप से पश्चिमी द्वीप तक जाती है। यूरोप की राइन भ्रंश घाटी में अनेक विलुप्त ज्वालामुखी पाए जाते हैं।

मध्य अटलांटिक मेखला
(3) मध्य अटलांटिक मेखला (Mid Atlantic Belt ) — भूमध्य सागर के प्रकाश स्तम्भ कीउपमा, कौन से ज्वालामुखी को प्रदान किया गया है? -स्ट्राम्बोली (इटली) विश्व का सबसे ऊँचा ज्वालामुखी पर्वत कौन-सा और किस देश में है –

-कोटोपैक्सी (इक्वेडोर) किस महाद्वीप में एक भी ज्वालआमुखी नहीं है -ऑस्ट्रेलियाकिस महाद्वीप में मात् एक सक्रिय ज्वालामुखी पाया जाता है? अंटार्कटिका (माउण्ट इरेबस)किस ज्वालामुखी परिमेखला कोअग्नि वलयकी संज्ञा प्रदान की गई। – प्रशान्त महासागर के परिमेखला को केन्द्रीय उद्भेदन वाले ज्वालामुखियों में किस प्रकार का ज्वालामुखी सर्वाधिक विनाशकारी, विस्फोट एवं भयंकर होता है
पीलियन तुल्य -विश्व की सर्वाधिक ऊँचाई पर स्थित सक्रिय ज्वाला मुखी कौन-सा है?- ओजोस डेल सलाडो (6885 मी0 एण्डीज
पर्वत, चिली/अर्जेंटीना)मध्य महासागरीय कटक ज्वालामुखी मेखला की संज्ञा से भी अभिहित किया जाता है। यह मेखलारचनात्मक प्लेट किनारों के सहारे मिलती है।

प्लेटों के अपसरण
* जहाँ पर दो प्लेटों के अपसरण (Divergence) के कारण या भ्रंशन का निर्माण होता है। इस भ्रंशन का प्रभाव एस्थिनोस्फीयर तक होता है, जहाँ से पेरिडोटाइट तथा बेसाल्ट मैग्मा ऊपर उठते हैं। * इनके शीतलन से नवीन क्रस्ट का निर्माण होता रहता है। कटक के पास नवीनतम लावा होता है तथा इससे (कटक से) जितना दूर हटते जाते हैं, लावा उतना ही प्राचीन होता जाता है। इस तरह की ज्वालामुखी क्रिया सबसे अधिक मध्य अटलांटिक कटक के सहारे होती है। आइसलैण्ड इस मेखला का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण सक्रिय क्षेत्र है, जहाँ लाकी, हेकला एवं हेल्गाफेल का उद्गार महत्त्वपूर्ण है। लेसर एण्टलीज (दक्षिणी अटलांटिक महासागर), एजोर द्वीप तथासेण्ट हेलना (उत्तरी अटलांटिक महासागर) आदि इस मेखला के अन्य प्रमुख ज्वालामुखी क्षेत्र हैं।

अन्तरा प्लेट ज्वालामुखी
(4) अन्तरा प्लेट ज्वालामुखी ( Intraplate Volcano)— महाद्वीपीय या महासागरीय प्लेट के अन्दर भी ज्वालामुखी क्रियायें होती हैं। जिसका कारण माइक्रो प्लेट गतिविधियों एवं गर्भ स्थल संकल्पना को माना जाता है, क्योंकि प्लेट विवर्तनिकी सिद्धान्त द्वारा अभी तक इनका स्पष्टीकरण नहीं हो पाया है। इस मेखला की एक प्रमुख श्रृंखला हवाई द्वीप से प्रारम्भ होकर उत्तर-पश्चिम दिशा में कमचटका तक चली गई है। स्मरणीय है कि मात्र हवाई द्वीप पर ही ज्वालामुखी उद्भेदन द्वारा भूकम्प आते हैं तथा सम्पूर्ण श्रृंखला भूकम्प रहित है। इसी कारण इसे भूकम्प रहित कटक कहते हैं। महासागरीय प्लेटों के अलावा महाद्वीपीय प्लेटों के आन्तरिक भागों में भी ज्वालामुखी का विशेषकर दरारी उद्भेदन होता है। उदाहरण के लिए कोलम्बिया पठार, भारतीय प्रायद्वीपीय पठार तथा ब्राजील एवं पराग्वे का पराना पठार आदि का निर्माण दरारी उद्भेदन के फलस्वरूप हुआ था Volcano

(b) बेसिक लावा — यह हल्का, पतला, धरातल पर शीघ्रता से फैलने वाला एवं कम सिलिका युक्त लावा होता है। अतः इससे चपटा या शील्ड शंकु का निर्माण होता है। जैसे- मोनालोआ शंकु (हवाई द्वीप)। ध्यातव्य है कि वर्तमान समय में मैग्मा, लावा तथा आग्नेय चट्टानों का वर्गीकरण रासायनिक एवं खनिज संगठन के आधार पर किया गया है।

(i) फेल्सिक (Felsic)- इसमें सिलिका प्रधान खनिज क्वार्ट्ज तथा फेल्सफार की अधिकता होती है, जो रंग में हल्के होते हैं। (ii) मैफिक (Malic)— इस समूह के खनिज में मैग्नेशियम व लोह तत्व की प्रधानता
तथा सिलिका की अपेक्षाकृत न्यूनता होती है, जो रंग में गहरे होते हैं। जैसे— पायरॉक्सींस, एम्फीबोल्स तथा ऑल्वीन आदि 

(iii) अल्ट्रामैफिक (Ultramafic)— फेल्सिक व मैफिक के मध्यस्थ गुणों वाले खनिजों को अल्ट्रामैफिक कहा जाता है। इनमें सिलिकान व एल्युमिनियम की मात्रा अधिक होती है।

ज्ञातव्य है कि फेल्सिक,अल्ट्रामैफिक एवं मैफिक के अन्तर्गत क्रमशः ग्रेनाइट, डायोराइट व गैंब्रो अंतर्जात लावा के और रायोलाइट, एंडेसाइट एवं बैसाल्ट क्रमशः बहिर्जात लावा के उदाहरण है। Volcano

कि मड वल्केनो (Mud Volcano) क्या है? मड वल्केनो ऐसी प्राकृतिक रचना है, जिनमें से भूउत्सर्जित गैसों और कीचड़नुमा गाद जैसे तरल पदार्थों का उत्सर्जन होता है। मड वल्केनो पृथ्वी पर मौजूद टेक्टोनिक प्लेटों को अलग करने वाले सीमावर्ती क्षेत्रों

(Subdiction Zone) में या ज्यादातर इसके आस-पास पाये जाते हैं। USA, कनाडा, ताइवान, इटली, ईरान, पाकिस्तान, रोमानिया, चीन, जापान, इण्डोनेशिया एवं कोलंबिया सहित ये विश्व के अनेक देशों में पाये गये हैं परन्तु ये भारत में सिर्फ अण्डमान समूह के बाराटांग नामक द्वीप में पाये जाते हैं। ध्यातव्य है, कि विश्व का सबसे बड़ा मड;लूसी इंडोनेशिया में है।

ज्वाला मुखी के अंग

लावा जब ज्वालामुखी छिद्र के चारों तरफ क्रमशः जमा होने लगता है तो ज्वालामुखी शंकु (Volcanic Cone) का निर्माण होता है। जब जमाव अधिक हो जाता है तो शंकु काफी बड़ा हो जाता है तथा पर्वत का रूप धारण कर लेता है। इस प्रकार के शंकु को ज्वालामुखी पर्वत (Volcanic Mountain ) कहते हैं। इस पर्वत के ऊपर लगभग बीच में एक छिद्र होता है, जिसे ज्वालामुखी छिद्र (Volcanic Vent) कहते हैं। इस छिद्र का धरातल के नीचे भूगर्भ से सम्बन्ध एक पतली नली से होता है। इस नली को ज्वालामुखी नली (Volcanic Pipe ) कहते हैं। जब ज्वालामुखी का छिद्र विस्तृत हो जाता है तो उसे ज्वालामुखी का मुख (Volcanic Crater) कहते हैं। जब घंसाव या अन्य कारण से ज्वालामुखी का विस्तार अत्यधिक हो जाता है। तो उसे काल्डेरा (Caldera) कहते हैं। Volcano

ज्वालामुखी के प्रकार

विभिन्न आधारों पर ज्वालामुखी को अधोलिखित प्रकार से वर्गीकृत किया गया है। यथा—

  • (A) सक्रियता के आधार पर ज्वालामुखी उद्गारों के बीच अवकाश के आधार पर ज्वालामुखी को तीन श्रेणियों में विभक्त किया गया है।
  • (1) सक्रिय ज्वालामुखी (Active Volcano) — ऐसे ज्वालामुखी जिनके मुख से सदैव धूल, धुआं, वाष्प, गैसें, राख, चट्टानखण्ड, लावा, आदि पदार्थ बाहर निकलते रहते हैं। सक्रिय ज्वालामुखी कहलाते हैं। वर्तमान में इनकी संख्या 500 से अधिक है। भारत में एकमात्र सक्रिय ज्वालामुखी अण्डमान-निकोबार द्वीप समूह के बैरन द्वीप में है।

विश्व के कुछ प्रमुख सक्रिय ज्वालामुखी निम्नवत है

  • • हवाई द्वीप (USA) – किलायू *
  • • पापुआ न्यूगिनी लांगिला एवं बागाना *
  • • इण्डोनेशिया समेरू (जावा) *, मेरापी* (सर्वाधिक सक्रिय), , दुकोनो*
  • • तान्ना द्वीप (वनुआतु) – यासुर* (विगत् 800 वर्षों से सक्रिय)
  • • सिसली द्वीप का • माउण्ट एटना* – लिपारी द्वीप का – स्ट्राम्बोली*
  • • इक्वेडोर का – कोटोपैक्सी*
  • • अंडमान निकोबार के बैरन द्वीप में* –
  • • हवाई द्वीप का मौनालोवा * (UPPSC : 05, 14)
  • • अर्जेन्टीना चिली की सीमा पर स्थित ओजोस डेल सलाडो*
  • अंटार्कटिका -रास द्वीप पर स्थित माउण्टइरेबस   ज्वालामुखी से संबन्धित एंव परिभाषा
    Volcano UPSC/PCS/UPSSSC -ज्वालामुखी का तात्पर्य उस छिद्र (Opening) अथवा दरार (Repture) से है जिसका सम्बन्ध पृथ्वी के आन्तरिक भाग से होता है, और जिसके माध्यम से तप्त गैस, तरल लावा, राख, जलवाष्प आदि का निर्गमन होता है। ज्वालामुखी क्रिया के अन्तर्गत मैग्मा के निकलने से लेकर धरातल या उसके अन्दर विभिन्न रूपों में इसके ठण्डा होने की प्रक्रिया शामिल होती है। Volcano

    (i) धरातल के नीचे भूगर्भ में मैग्मा के शीतल होकर जमने की प्रक्रिया, जिससे बैथोलिथ फैकोलिथ, लोपोलिथ, सिल तथा डाइक
    स्वरूप की अन्तः स्थलाकृतियों का निर्माण होता है। इसका विवेचन चट्टानों के अध्याय में किया गया है। Volcano

    (ii) दूसरे में धरातल के ऊपर घटित होने वाली क्रियाएँ सम्मिलित होती हैं। Volcano

    इसमे प्रमुख जो निम्नवत हैं ।
    ज्वालामुखी (Volcano) धरातलीय प्रवाह (Fissure Flows) गर्म जल के स्रोत (Hot Spring)गेसर (Geyser) धुँआरे (Fumaroles) इस व्याख्या से यह स्पष्ट हो जाता है कि ज्वालामुखी क्रिया एक ज्वालामुखी से निकलने वाले पदार्थों को तीन श्रेणियों में विभक्तकिया जाता है। Volcano

    (i) गैस तथा जलवाष्प- ज्वालामुखी उद्भेदन के समय सर्वप्रथम गैसें एवं जलवाष्प बाहर आते हैं। इसमें जलवाष्प की मात्रा सर्वाधिक (60-90%) होती है* । अन्य गैसों में CO,, नाइट्रोजन (N), हाइड्रोजन (H), हाइड्रोजन क्लोराइड (Hcl), कार्बन मोनोआक्साइड (CO) हाइड्रोजन फ्लुओराइड (HF), हीलियम (He) एवं सल्फर डाइऑक्साइड आदि प्रमुख होती हैं।

    (ii) विखण्डित पदार्थ — इसमें धूल एवं राख से बने चट्टानी टुकड़े (टफ); मटर के दाने के आकार वाले टुकड़े (लैपिली)*; कुछ इंच से लेकर कई फीट तक के व्यास वाले बड़े-बड़े चट्टानी टुकड़े बाम्ब कोणाकृत अपेक्षाकृत बड़े आकार के टुकड़े ब्रेसिया* आदि बाहर धरातल पर निकलते हैं। Volcano

    (iii) लावा (Lava)— ज्वालामुखी उद्गार के समय भूगर्भ में स्थित पदार्थ को मैग्मा कहते हैं; जब मैग्मा धरातल पर निस्सृत होता है तो उसे लावा की संज्ञा दी जाती है; धरातल पर लावा के ठंडा होने के बाद वह आग्नेय चट्टान की उपमा धारण करता है। Volcano

    सिलिका आधार पर लावा दो प्रकार के होते हैं ।
    (a) एसिड लावा— यह अत्यन्त गाढ़ा तथा चिपचिपा होता है, जिसमें सिलिका की मात्रा अधिक होती है। अतः यह धरातल पर दूर तक फैलकर क्रेटर के आसपास गुम्बदाकार शंकु का निर्माण करता है। – स्ट्राम्बोली (इटली) एवं पाई-डी-डोम (फ्रांस) आदि।

    (b) बेसिक लावा — यह हल्का, पतला, धरातल पर शीघ्रता से फैलने वाला एवं कम सिलिका युक्त लावा होता है। अतः इससे चपटा या शील्ड शंकु का निर्माण होता है। जैसे- मोनालोआ शंकु (हवाई द्वीप)। ध्यातव्य है कि वर्तमान समय में मैग्मा, लावा तथा आग्नेय चट्टानों का वर्गीकरण रासायनिक एवं खनिज संगठन के आधार पर किया गया है।

    (i) फेल्सिक (Felsic)- इसमें सिलिका प्रधान खनिज क्वार्ट्ज तथा फेल्सफार की अधिकता होती है, जो रंग में हल्के होते हैं। (ii) मैफिक (Malic)— इस समूह के खनिज में मैग्नेशियम व लोह तत्व की प्रधानता
    तथा सिलिका की अपेक्षाकृत न्यूनता होती है, जो रंग में गहरे होते हैं। जैसे— पायरॉक्सींस, एम्फीबोल्स तथा ऑल्वीन आदि

    (iii) अल्ट्रामैफिक (Ultramafic)— फेल्सिक व मैफिक के मध्यस्थ गुणों वाले खनिजों को अल्ट्रामैफिक कहा जाता है। इनमें सिलिकान व एल्युमिनियम की मात्रा अधिक होती है।

    ज्ञातव्य है कि फेल्सिक,अल्ट्रामैफिक एवं मैफिक के अन्तर्गत क्रमशः ग्रेनाइट, डायोराइट व गैंब्रो अंतर्जात लावा के और रायोलाइट, एंडेसाइट एवं बैसाल्ट क्रमशः बहिर्जात लावा के उदाहरण है। Volcano

    • कि मड वल्केनो (Mud Volcano) क्या है? मड वल्केनो ऐसी प्राकृतिक रचना है, जिनमें से भूउत्सर्जित गैसों और कीचड़नुमा गाद जैसे तरल पदार्थों का उत्सर्जन होता है। मड वल्केनो पृथ्वी पर मौजूद टेक्टोनिक प्लेटों को अलग करने वाले सीमावर्ती क्षेत्रों

    (Subdiction Zone) में या ज्यादातर इसके आस-पास पाये जाते हैं। USA, कनाडा, ताइवान, इटली, ईरान, पाकिस्तान, रोमानिया, चीन, जापान, इण्डोनेशिया एवं कोलंबिया सहित ये विश्व के अनेक देशों में पाये गये हैं परन्तु ये भारत में सिर्फ अण्डमान समूह के बाराटांग नामक द्वीप में पाये जाते हैं। ध्यातव्य है, कि विश्व का सबसे बड़ा मड;लूसी इंडोनेशिया में है।

    ज्वाला मुखी के अंग
    लावा जब ज्वालामुखी छिद्र के चारों तरफ क्रमशः जमा होने लगता है तो ज्वालामुखी शंकु (Volcanic Cone) का निर्माण होता है। जब जमाव अधिक हो जाता है तो शंकु काफी बड़ा हो जाता है तथा पर्वत का रूप धारण कर लेता है। इस प्रकार के शंकु को ज्वालामुखी पर्वत (Volcanic Mountain ) कहते हैं। इस पर्वत के ऊपर लगभग बीच में एक छिद्र होता है, जिसे ज्वालामुखी छिद्र (Volcanic Vent) कहते हैं। इस छिद्र का धरातल के नीचे भूगर्भ से सम्बन्ध एक पतली नली से होता है। इस नली को ज्वालामुखी नली (Volcanic Pipe ) कहते हैं। जब ज्वालामुखी का छिद्र विस्तृत हो जाता है तो उसे ज्वालामुखी का मुख (Volcanic Crater) कहते हैं। जब घंसाव या अन्य कारण से ज्वालामुखी का विस्तार अत्यधिक हो जाता है। तो उसे काल्डेरा (Caldera) कहते हैं। Volcano

    ज्वालामुखी के प्रकार
    विभिन्न आधारों पर ज्वालामुखी को अधोलिखित प्रकार से वर्गीकृत किया गया है। यथा—

    (A) सक्रियता के आधार पर ज्वालामुखी उद्गारों के बीच अवकाश के आधार पर ज्वालामुखी को तीन श्रेणियों में विभक्त किया गया है।
    (1) सक्रिय ज्वालामुखी (Active Volcano) — ऐसे ज्वालामुखी जिनके मुख से सदैव धूल, धुआं, वाष्प, गैसें, राख, चट्टानखण्ड, लावा, आदि पदार्थ बाहर निकलते रहते हैं। सक्रिय ज्वालामुखी कहलाते हैं। वर्तमान में इनकी संख्या 500 से अधिक है। भारत में एकमात्र सक्रिय ज्वालामुखी अण्डमान-निकोबार द्वीप समूह के बैरन द्वीप में है।
    विश्व के कुछ प्रमुख सक्रिय ज्वालामुखी निम्नवत है
    • हवाई द्वीप (USA) – किलायू *
    • पापुआ न्यूगिनी लांगिला एवं बागाना *
    • इण्डोनेशिया समेरू (जावा) *, मेरापी* (सर्वाधिक सक्रिय), , दुकोनो*
    • तान्ना द्वीप (वनुआतु) – यासुर* (विगत् 800 वर्षों से सक्रिय)
    • सिसली द्वीप का • माउण्ट एटना* – लिपारी द्वीप का – स्ट्राम्बोली*
    • इक्वेडोर का – कोटोपैक्सी*
    • अंडमान निकोबार के बैरन द्वीप में* –
    • हवाई द्वीप का मौनालोवा * (UPPSC : 05, 14)
    • अर्जेन्टीना चिली की सीमा पर स्थित ओजोस डेल सलाडो*
    अंटार्कटिका -रास द्वीप पर स्थित माउण्टइरेबस
    (2) प्रसुप्त ज्वालामुखी (Dormant Volcano) — ऐसे ज्वालामुखी जिसमें निकट अतीत में उद्गार नहीं हुआ है, लेकिन जिसमें कभी भी उद्गार हो सकता है। प्रसुप्त ज्वालामुखी की संज्ञा से जाने जाते हैं। जैसे—
    • इटली का विसुवियस*
    • जापान का फ्यूजीयामा*
    • इंडोनेशिया का – क्राकाटाओ*
    अण्डमान-निकोबार का – नारकोंडम द्वीप में
    (3) शान्त ज्वालामुखी (Extinct Volcano)- वैसा ज्वालामुखी जिसमें ऐतिहासिक काल से कोई उद्गार नहीं हुआ है और जिसमें पुनः
    उद्गार होने की सम्भावना नहीं हो। जैसे—
    • ईरान का देमबंद
    • पाकिस्तान- कोह सुल्तान • म्यांमार का माउन्ट पोपा
    • तंजानिया का – किलिमंजारो*
    • इक्वेडोर का – चिम्बराजो
    • एण्डीज पर्वत श्रेणी का – एकांकागुआ
    (B) उद्गार के अनुसार — ज्वालामुखी का उद्गार प्रायः दो = रूपों में होता है यथा-
    (1) केन्द्रीय उद्भेदन (Central Eruption ) – जब
    ज्वालामुखी उद्भेदन किसी एक केन्द्रीय मुख (vent) से भारी धमाके के साथ होता है तो उसे केन्द्रीय उद्भेदन कहते हैं। यह विनाशात्मक प्लेटो के किनारों के सहारे होता है।* ये कई प्रकार के होते हैं। यथा- हवाई तुल्य, स्ट्राम्बोली तुल्य, वलकेनियन तुल्य, पीलियन तुल्य तथा विसुवियस तुल्य। इनमें पीलियन प्रकार के ज्वालामुखी सबसे अधिक विनाशकारी होते हैं तथा इनका उद्गार सबसे अधिक विस्फोटक एवं भयंकर होता है। जैसे— पश्चिमी द्वीपसमूह के मार्टिनिक द्वीप का पीली (Pelee) ज्वालामुखी, सुण्डा जलडमरूमध्य का क्राकाटोवा ज्वालामुखी तथा फिलीपाइन द्वीप समूह का माउण्ट ताल का भयंकर उद्भेदन । Volcano

    (2) दरारी उद्भेदन (Fis sure Eruption)— भू-गर्भिक हलचलों से भूपर्पटी की शैलों में दरारें पड़ जाती हैं। इन दरारों से लावा धरातल पर प्रवाहित होकर निकलता है जिसे दरारी उद्भेदन कहते हैं। यह रचनात्मक प्लेट-किनारों के सहारे होता है। * इस प्रकार के उद्गार क्रीटैशियस युग में बड़े पैमाने पर हुए थे। जिससे लावा पठारों का निर्माण हुआ था। Volcano

    ज्वालामुखी का विश्व वितरण
    प्लेट विवर्तनिकी (Plate Tectonic) के आधार पर प्लेट किनारों के परिवेश में ज्वालामुखियों के क्षेत्र का वितरण वर्तमान समय में सर्वाधिक मान्य संकल्पना है। विश्वस्तर पर अधिकांश सक्रिय ज्वालामुखी प्लेट की सीमाओं के साथ सम्बन्धित हैं। लगभग 15 प्रतिशत ज्वालामुखी रचनात्मक प्लेट किनारों के सहारे तथा 80 प्रतिशत विनाशी प्लेट किनारों के सहारे पाये जाते हैं। * इनके अलावा कुछ ज्वालामुखी का उद्भेदन प्लेट के आन्तरिक भाग (Intra-Plate Region) में भी होता है।

    (1) परिप्रशान्त महासागरीय मेखला (Circum Pacific Relt) – प्रशान्त महासागर में स्थित द्वीपों और उसके चारों ओर तरीय भाग में ज्वालामुखियों की संख्या अत्यधिक पायी जाती है। यहाँ जा विनाशात्मक प्लेट किनारों के सहारे ज्वालामुखी मिलते हैं। विश्व स के ज्वालामुखियों का लगभग 2/3 भाग प्रशान्त महासागर के दोनों तटीय भागों, द्वीप चापों तथा समुद्री द्वीपों के सहारे पाया जाता है। है इसे ;प्रशान्त महासागर का अग्निवलय; (Fire Ring of the Pacific Ocean) कहते हैं। यह पेटी अंटार्कटिका के माउन्ट इरेबस से शुरू होकर दक्षिण अमेरिका के एंडीज पर्वतमाला व उत्तर अमेरिका के रॉकी पर्वतमाला का अनुसरण करते हुए अलास्का, पूर्वी रूस, जापान, फिलीपींस आदि द्वीपों से होते हुए ;मध्य महाद्वीपीय पेटी; में मिल है। Volcano

    मध्य महाद्वीपीय पेटी
    (2) मध्य महाद्वीपीय पेटी (Mid-Continental Belt)— इस मेखला के अधिकांश ज्वालामुखी विनाशी प्लेट किनारों के सहारे आते हैं क्योंकि यूरेशियन प्लेट तथा अफ्रीकन एवं इण्डियन प्लेट का अभिसरण होता है। यह यूरेशिया महाद्वीप के मध्यवर्ती भागों में नवीन वलित पर्वतों के सहारे पूर्व से पश्चिम को फैली हुई है। यह आइसलैण्ड से प्रारम्भ होकर स्कॉटलैण्ड होती हुई अफ्रीका के कैमरून पर्वत की ओर जाती है। कनारी द्वीप पर इसकी दो शाखाएँ हो जाती हैं—

    एक पश्चिम की ओर और दूसरी पूर्व की ओर। पूर्व की ओर वाली शाखा स्पेन, इटली, सिसली, तुर्की, काकेशिया, आरमेनिया, ईरान, अफगानिस्तान, पाकिस्तान, भारत, म्यांमार और मलेशिया होती हुई इण्डोनेशिया तक चली जाती है। इसके अतिरिक्त अरब में जार्डन की भ्रंश घाटी एवं लाल सागर होती हुई एक श्रृंखला अफ्रीका की विशाल भ्रंश घाटी तक फैली हुई है। पश्चिम की ओर वाली शाखा कनारी द्वीप से पश्चिमी द्वीप तक जाती है। यूरोप की राइन भ्रंश घाटी में अनेक विलुप्त ज्वालामुखी पाए जाते हैं।

    मध्य अटलांटिक मेखला
    (3) मध्य अटलांटिक मेखला (Mid Atlantic Belt ) — भूमध्य सागर के प्रकाश स्तम्भ कीउपमा, कौन से ज्वालामुखी को प्रदान किया गया है? -स्ट्राम्बोली (इटली) विश्व का सबसे ऊँचा ज्वालामुखी पर्वत कौन-सा और किस देश में है –

    -कोटोपैक्सी (इक्वेडोर) किस महाद्वीप में एक भी ज्वालआमुखी नहीं है -ऑस्ट्रेलियाकिस महाद्वीप में मात् एक सक्रिय ज्वालामुखी पाया जाता है? अंटार्कटिका (माउण्ट इरेबस)किस ज्वालामुखी परिमेखला कोअग्नि वलयकी संज्ञा प्रदान की गई। – प्रशान्त महासागर के परिमेखला को केन्द्रीय उद्भेदन वाले ज्वालामुखियों में किस प्रकार का ज्वालामुखी सर्वाधिक विनाशकारी, विस्फोट एवं भयंकर होता है
    पीलियन तुल्य -विश्व की सर्वाधिक ऊँचाई पर स्थित सक्रिय ज्वाला मुखी कौन-सा है?- ओजोस डेल सलाडो (6885 मी0 एण्डीज
    पर्वत, चिली/अर्जेंटीना)मध्य महासागरीय कटक ज्वालामुखी मेखला की संज्ञा से भी अभिहित किया जाता है। यह मेखलारचनात्मक प्लेट किनारों के सहारे मिलती है।

    प्लेटों के अपसरण
    * जहाँ पर दो प्लेटों के अपसरण (Divergence) के कारण या भ्रंशन का निर्माण होता है। इस भ्रंशन का प्रभाव एस्थिनोस्फीयर तक होता है, जहाँ से पेरिडोटाइट तथा बेसाल्ट मैग्मा ऊपर उठते हैं। * इनके शीतलन से नवीन क्रस्ट का निर्माण होता रहता है। कटक के पास नवीनतम लावा होता है तथा इससे (कटक से) जितना दूर हटते जाते हैं, लावा उतना ही प्राचीन होता जाता है। इस तरह की ज्वालामुखी क्रिया सबसे अधिक मध्य अटलांटिक कटक के सहारे होती है। आइसलैण्ड इस मेखला का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण सक्रिय क्षेत्र है, जहाँ लाकी, हेकला एवं हेल्गाफेल का उद्गार महत्त्वपूर्ण है। लेसर एण्टलीज (दक्षिणी अटलांटिक महासागर), एजोर द्वीप तथासेण्ट हेलना (उत्तरी अटलांटिक महासागर) आदि इस मेखला के अन्य प्रमुख ज्वालामुखी क्षेत्र हैं।

    अन्तरा प्लेट ज्वालामुखी
    (4) अन्तरा प्लेट ज्वालामुखी ( Intraplate Volcano)— महाद्वीपीय या महासागरीय प्लेट के अन्दर भी ज्वालामुखी क्रियायें होती हैं। जिसका कारण माइक्रो प्लेट गतिविधियों एवं गर्भ स्थल संकल्पना को माना जाता है, क्योंकि प्लेट विवर्तनिकी सिद्धान्त द्वारा अभी तक इनका स्पष्टीकरण नहीं हो पाया है। इस मेखला की एक प्रमुख श्रृंखला हवाई द्वीप से प्रारम्भ होकर उत्तर-पश्चिम दिशा में कमचटका तक चली गई है। स्मरणीय है कि मात्र हवाई द्वीप पर ही ज्वालामुखी उद्भेदन द्वारा भूकम्प आते हैं तथा सम्पूर्ण श्रृंखला भूकम्प रहित है। इसी कारण इसे भूकम्प रहित कटक कहते हैं। महासागरीय प्लेटों के अलावा महाद्वीपीय प्लेटों के आन्तरिक भागों में भी ज्वालामुखी का विशेषकर दरारी उद्भेदन होता है। उदाहरण के लिए कोलम्बिया पठार, भारतीय प्रायद्वीपीय पठार तथा ब्राजील एवं पराग्वे का पराना पठार आदि का निर्माण दरारी उद्भेदन के फलस्वरूप हुआ था Volcano

    उपरोक्त से संबन्धित PDF डाउनलोड कर सकते हैं । Volcano ( ज्वालामुखी)

(2) प्रसुप्त ज्वालामुखी (Dormant Volcano) — ऐसे ज्वालामुखी जिसमें निकट अतीत में उद्गार नहीं हुआ है, लेकिन जिसमें कभी भी उद्गार हो सकता है। प्रसुप्त ज्वालामुखी की संज्ञा से जाने जाते हैं। जैसे—

  • • इटली का विसुवियस*
  • • जापान का फ्यूजीयामा*
  • • इंडोनेशिया का – क्राकाटाओ*
  • अण्डमान-निकोबार का – नारकोंडम द्वीप में

(3) शान्त ज्वालामुखी (Extinct Volcano)- वैसा ज्वालामुखी जिसमें ऐतिहासिक काल से कोई उद्गार नहीं हुआ है और जिसमें पुनः
उद्गार होने की सम्भावना नहीं हो। जैसे—

  • • ईरान का देमबंद
  • • पाकिस्तान- कोह सुल्तान • म्यांमार का माउन्ट पोपा
  • • तंजानिया का – किलिमंजारो*
  • • इक्वेडोर का – चिम्बराजो
  • • एण्डीज पर्वत श्रेणी का – एकांकागुआ

(B) उद्गार के अनुसार — ज्वालामुखी का उद्गार प्रायः दो = रूपों में होता है यथा-

(1) केन्द्रीय उद्भेदन (Central Eruption ) – जब

ज्वालामुखी उद्भेदन किसी एक केन्द्रीय मुख (vent) से भारी धमाके के साथ होता है तो उसे केन्द्रीय उद्भेदन कहते हैं। यह विनाशात्मक प्लेटो के किनारों के सहारे होता है।* ये कई प्रकार के होते हैं। यथा- हवाई तुल्य, स्ट्राम्बोली तुल्य, वलकेनियन तुल्य, पीलियन तुल्य तथा विसुवियस तुल्य। इनमें पीलियन प्रकार के ज्वालामुखी सबसे अधिक विनाशकारी होते हैं तथा इनका उद्गार सबसे अधिक विस्फोटक एवं भयंकर होता है। जैसे— पश्चिमी द्वीपसमूह के मार्टिनिक द्वीप का पीली (Pelee) ज्वालामुखी, सुण्डा जलडमरूमध्य का क्राकाटोवा ज्वालामुखी तथा फिलीपाइन द्वीप समूह का माउण्ट ताल का भयंकर उद्भेदन । Volcano

(2) दरारी उद्भेदन (Fis sure Eruption)— भू-गर्भिक हलचलों से भूपर्पटी की शैलों में दरारें पड़ जाती हैं। इन दरारों से लावा धरातल पर प्रवाहित होकर निकलता है जिसे दरारी उद्भेदन कहते हैं। यह रचनात्मक प्लेट-किनारों के सहारे होता है। * इस प्रकार के उद्गार क्रीटैशियस युग में बड़े पैमाने पर हुए थे। जिससे लावा पठारों का निर्माण हुआ था। Volcano

ज्वालामुखी का विश्व वितरण

प्लेट विवर्तनिकी (Plate Tectonic) के आधार पर प्लेट किनारों के परिवेश में ज्वालामुखियों के क्षेत्र का वितरण वर्तमान समय में सर्वाधिक मान्य संकल्पना है। विश्वस्तर पर अधिकांश सक्रिय ज्वालामुखी प्लेट की सीमाओं के साथ सम्बन्धित हैं। लगभग 15 प्रतिशत ज्वालामुखी रचनात्मक प्लेट किनारों के सहारे तथा 80 प्रतिशत विनाशी प्लेट किनारों के सहारे पाये जाते हैं। * इनके अलावा कुछ ज्वालामुखी का उद्भेदन प्लेट के आन्तरिक भाग (Intra-Plate Region) में भी होता है।

(1) परिप्रशान्त महासागरीय मेखला (Circum Pacific Relt) – प्रशान्त महासागर में स्थित द्वीपों और उसके चारों ओर तरीय भाग में ज्वालामुखियों की संख्या अत्यधिक पायी जाती है। यहाँ जा विनाशात्मक प्लेट किनारों के सहारे ज्वालामुखी मिलते हैं। विश्व स के ज्वालामुखियों का लगभग 2/3 भाग प्रशान्त महासागर के दोनों तटीय भागों, द्वीप चापों तथा समुद्री द्वीपों के सहारे पाया जाता है। है इसे ;प्रशान्त महासागर का अग्निवलय; (Fire Ring of the Pacific Ocean) कहते हैं। यह पेटी अंटार्कटिका के माउन्ट इरेबस से शुरू होकर दक्षिण अमेरिका के एंडीज पर्वतमाला व उत्तर अमेरिका के रॉकी पर्वतमाला का अनुसरण करते हुए अलास्का, पूर्वी रूस, जापान, फिलीपींस आदि द्वीपों से होते हुए ;मध्य महाद्वीपीय पेटी; में मिल है। Volcano

मध्य महाद्वीपीय पेटी

(2) मध्य महाद्वीपीय पेटी (Mid-Continental Belt)— इस मेखला के अधिकांश ज्वालामुखी विनाशी प्लेट किनारों के सहारे आते हैं क्योंकि यूरेशियन प्लेट तथा अफ्रीकन एवं इण्डियन प्लेट का अभिसरण होता है। यह यूरेशिया महाद्वीप के मध्यवर्ती भागों में नवीन वलित पर्वतों के सहारे पूर्व से पश्चिम को फैली हुई है। यह आइसलैण्ड से प्रारम्भ होकर स्कॉटलैण्ड होती हुई अफ्रीका के कैमरून पर्वत की ओर जाती है। कनारी द्वीप पर इसकी दो शाखाएँ हो जाती हैं—

एक पश्चिम की ओर और दूसरी पूर्व की ओर। पूर्व की ओर वाली शाखा स्पेन, इटली, सिसली, तुर्की, काकेशिया, आरमेनिया, ईरान, अफगानिस्तान, पाकिस्तान, भारत, म्यांमार और मलेशिया होती हुई इण्डोनेशिया तक चली जाती है। इसके अतिरिक्त अरब में जार्डन की भ्रंश घाटी एवं लाल सागर होती हुई एक श्रृंखला अफ्रीका की विशाल भ्रंश घाटी तक फैली हुई है। पश्चिम की ओर वाली शाखा कनारी द्वीप से पश्चिमी द्वीप तक जाती है। यूरोप की राइन भ्रंश घाटी में अनेक विलुप्त ज्वालामुखी पाए जाते हैं।

ज्वालामुखी से संबन्धित एंव परिभाषा
Volcano UPSC/PCS/UPSSSC -ज्वालामुखी का तात्पर्य उस छिद्र (Opening) अथवा दरार (Repture) से है जिसका सम्बन्ध पृथ्वी के आन्तरिक भाग से होता है, और जिसके माध्यम से तप्त गैस, तरल लावा, राख, जलवाष्प आदि का निर्गमन होता है। ज्वालामुखी क्रिया के अन्तर्गत मैग्मा के निकलने से लेकर धरातल या उसके अन्दर विभिन्न रूपों में इसके ठण्डा होने की प्रक्रिया शामिल होती है। Volcano

(i) धरातल के नीचे भूगर्भ में मैग्मा के शीतल होकर जमने की प्रक्रिया, जिससे बैथोलिथ फैकोलिथ, लोपोलिथ, सिल तथा डाइक
स्वरूप की अन्तः स्थलाकृतियों का निर्माण होता है। इसका विवेचन चट्टानों के अध्याय में किया गया है। Volcano

(ii) दूसरे में धरातल के ऊपर घटित होने वाली क्रियाएँ सम्मिलित होती हैं। Volcano

इसमे प्रमुख जो निम्नवत हैं ।
ज्वालामुखी (Volcano) धरातलीय प्रवाह (Fissure Flows) गर्म जल के स्रोत (Hot Spring)गेसर (Geyser) धुँआरे (Fumaroles) इस व्याख्या से यह स्पष्ट हो जाता है कि ज्वालामुखी क्रिया एक ज्वालामुखी से निकलने वाले पदार्थों को तीन श्रेणियों में विभक्तकिया जाता है। Volcano

(i) गैस तथा जलवाष्प- ज्वालामुखी उद्भेदन के समय सर्वप्रथम गैसें एवं जलवाष्प बाहर आते हैं। इसमें जलवाष्प की मात्रा सर्वाधिक (60-90%) होती है* । अन्य गैसों में CO,, नाइट्रोजन (N), हाइड्रोजन (H), हाइड्रोजन क्लोराइड (Hcl), कार्बन मोनोआक्साइड (CO) हाइड्रोजन फ्लुओराइड (HF), हीलियम (He) एवं सल्फर डाइऑक्साइड आदि प्रमुख होती हैं।

(ii) विखण्डित पदार्थ — इसमें धूल एवं राख से बने चट्टानी टुकड़े (टफ); मटर के दाने के आकार वाले टुकड़े (लैपिली)*; कुछ इंच से लेकर कई फीट तक के व्यास वाले बड़े-बड़े चट्टानी टुकड़े बाम्ब कोणाकृत अपेक्षाकृत बड़े आकार के टुकड़े ब्रेसिया* आदि बाहर धरातल पर निकलते हैं। Volcano

(iii) लावा (Lava)— ज्वालामुखी उद्गार के समय भूगर्भ में स्थित पदार्थ को मैग्मा कहते हैं; जब मैग्मा धरातल पर निस्सृत होता है तो उसे लावा की संज्ञा दी जाती है; धरातल पर लावा के ठंडा होने के बाद वह आग्नेय चट्टान की उपमा धारण करता है। Volcano

सिलिका आधार पर लावा दो प्रकार के होते हैं ।
(a) एसिड लावा— यह अत्यन्त गाढ़ा तथा चिपचिपा होता है, जिसमें सिलिका की मात्रा अधिक होती है। अतः यह धरातल पर दूर तक फैलकर क्रेटर के आसपास गुम्बदाकार शंकु का निर्माण करता है। – स्ट्राम्बोली (इटली) एवं पाई-डी-डोम (फ्रांस) आदि।

(b) बेसिक लावा — यह हल्का, पतला, धरातल पर शीघ्रता से फैलने वाला एवं कम सिलिका युक्त लावा होता है। अतः इससे चपटा या शील्ड शंकु का निर्माण होता है। जैसे- मोनालोआ शंकु (हवाई द्वीप)। ध्यातव्य है कि वर्तमान समय में मैग्मा, लावा तथा आग्नेय चट्टानों का वर्गीकरण रासायनिक एवं खनिज संगठन के आधार पर किया गया है।

(i) फेल्सिक (Felsic)- इसमें सिलिका प्रधान खनिज क्वार्ट्ज तथा फेल्सफार की अधिकता होती है, जो रंग में हल्के होते हैं। (ii) मैफिक (Malic)— इस समूह के खनिज में मैग्नेशियम व लोह तत्व की प्रधानता
तथा सिलिका की अपेक्षाकृत न्यूनता होती है, जो रंग में गहरे होते हैं। जैसे— पायरॉक्सींस, एम्फीबोल्स तथा ऑल्वीन आदि

(iii) अल्ट्रामैफिक (Ultramafic)— फेल्सिक व मैफिक के मध्यस्थ गुणों वाले खनिजों को अल्ट्रामैफिक कहा जाता है। इनमें सिलिकान व एल्युमिनियम की मात्रा अधिक होती है।

ज्ञातव्य है कि फेल्सिक,अल्ट्रामैफिक एवं मैफिक के अन्तर्गत क्रमशः ग्रेनाइट, डायोराइट व गैंब्रो अंतर्जात लावा के और रायोलाइट, एंडेसाइट एवं बैसाल्ट क्रमशः बहिर्जात लावा के उदाहरण है। Volcano

• कि मड वल्केनो (Mud Volcano) क्या है? मड वल्केनो ऐसी प्राकृतिक रचना है, जिनमें से भूउत्सर्जित गैसों और कीचड़नुमा गाद जैसे तरल पदार्थों का उत्सर्जन होता है। मड वल्केनो पृथ्वी पर मौजूद टेक्टोनिक प्लेटों को अलग करने वाले सीमावर्ती क्षेत्रों

(Subdiction Zone) में या ज्यादातर इसके आस-पास पाये जाते हैं। USA, कनाडा, ताइवान, इटली, ईरान, पाकिस्तान, रोमानिया, चीन, जापान, इण्डोनेशिया एवं कोलंबिया सहित ये विश्व के अनेक देशों में पाये गये हैं परन्तु ये भारत में सिर्फ अण्डमान समूह के बाराटांग नामक द्वीप में पाये जाते हैं। ध्यातव्य है, कि विश्व का सबसे बड़ा मड;लूसी इंडोनेशिया में है।

ज्वाला मुखी के अंग
लावा जब ज्वालामुखी छिद्र के चारों तरफ क्रमशः जमा होने लगता है तो ज्वालामुखी शंकु (Volcanic Cone) का निर्माण होता है। जब जमाव अधिक हो जाता है तो शंकु काफी बड़ा हो जाता है तथा पर्वत का रूप धारण कर लेता है। इस प्रकार के शंकु को ज्वालामुखी पर्वत (Volcanic Mountain ) कहते हैं। इस पर्वत के ऊपर लगभग बीच में एक छिद्र होता है, जिसे ज्वालामुखी छिद्र (Volcanic Vent) कहते हैं। इस छिद्र का धरातल के नीचे भूगर्भ से सम्बन्ध एक पतली नली से होता है। इस नली को ज्वालामुखी नली (Volcanic Pipe ) कहते हैं। जब ज्वालामुखी का छिद्र विस्तृत हो जाता है तो उसे ज्वालामुखी का मुख (Volcanic Crater) कहते हैं। जब घंसाव या अन्य कारण से ज्वालामुखी का विस्तार अत्यधिक हो जाता है। तो उसे काल्डेरा (Caldera) कहते हैं। Volcano

ज्वालामुखी के प्रकार
विभिन्न आधारों पर ज्वालामुखी को अधोलिखित प्रकार से वर्गीकृत किया गया है। यथा—

(A) सक्रियता के आधार पर ज्वालामुखी उद्गारों के बीच अवकाश के आधार पर ज्वालामुखी को तीन श्रेणियों में विभक्त किया गया है।
(1) सक्रिय ज्वालामुखी (Active Volcano) — ऐसे ज्वालामुखी जिनके मुख से सदैव धूल, धुआं, वाष्प, गैसें, राख, चट्टानखण्ड, लावा, आदि पदार्थ बाहर निकलते रहते हैं। सक्रिय ज्वालामुखी कहलाते हैं। वर्तमान में इनकी संख्या 500 से अधिक है। भारत में एकमात्र सक्रिय ज्वालामुखी अण्डमान-निकोबार द्वीप समूह के बैरन द्वीप में है।
विश्व के कुछ प्रमुख सक्रिय ज्वालामुखी निम्नवत है
• हवाई द्वीप (USA) – किलायू *
• पापुआ न्यूगिनी लांगिला एवं बागाना *
• इण्डोनेशिया समेरू (जावा) *, मेरापी* (सर्वाधिक सक्रिय), , दुकोनो*
• तान्ना द्वीप (वनुआतु) – यासुर* (विगत् 800 वर्षों से सक्रिय)
• सिसली द्वीप का • माउण्ट एटना* – लिपारी द्वीप का – स्ट्राम्बोली*
• इक्वेडोर का – कोटोपैक्सी*
• अंडमान निकोबार के बैरन द्वीप में* –
• हवाई द्वीप का मौनालोवा * (UPPSC : 05, 14)
• अर्जेन्टीना चिली की सीमा पर स्थित ओजोस डेल सलाडो*
अंटार्कटिका -रास द्वीप पर स्थित माउण्टइरेबस
(2) प्रसुप्त ज्वालामुखी (Dormant Volcano) — ऐसे ज्वालामुखी जिसमें निकट अतीत में उद्गार नहीं हुआ है, लेकिन जिसमें कभी भी उद्गार हो सकता है। प्रसुप्त ज्वालामुखी की संज्ञा से जाने जाते हैं। जैसे—
• इटली का विसुवियस*
• जापान का फ्यूजीयामा*
• इंडोनेशिया का – क्राकाटाओ*
अण्डमान-निकोबार का – नारकोंडम द्वीप में
(3) शान्त ज्वालामुखी (Extinct Volcano)- वैसा ज्वालामुखी जिसमें ऐतिहासिक काल से कोई उद्गार नहीं हुआ है और जिसमें पुनः
उद्गार होने की सम्भावना नहीं हो। जैसे—
• ईरान का देमबंद
• पाकिस्तान- कोह सुल्तान • म्यांमार का माउन्ट पोपा
• तंजानिया का – किलिमंजारो*
• इक्वेडोर का – चिम्बराजो
• एण्डीज पर्वत श्रेणी का – एकांकागुआ
(B) उद्गार के अनुसार — ज्वालामुखी का उद्गार प्रायः दो = रूपों में होता है यथा-
(1) केन्द्रीय उद्भेदन (Central Eruption ) – जब
ज्वालामुखी उद्भेदन किसी एक केन्द्रीय मुख (vent) से भारी धमाके के साथ होता है तो उसे केन्द्रीय उद्भेदन कहते हैं। यह विनाशात्मक प्लेटो के किनारों के सहारे होता है।* ये कई प्रकार के होते हैं। यथा- हवाई तुल्य, स्ट्राम्बोली तुल्य, वलकेनियन तुल्य, पीलियन तुल्य तथा विसुवियस तुल्य। इनमें पीलियन प्रकार के ज्वालामुखी सबसे अधिक विनाशकारी होते हैं तथा इनका उद्गार सबसे अधिक विस्फोटक एवं भयंकर होता है। जैसे— पश्चिमी द्वीपसमूह के मार्टिनिक द्वीप का पीली (Pelee) ज्वालामुखी, सुण्डा जलडमरूमध्य का क्राकाटोवा ज्वालामुखी तथा फिलीपाइन द्वीप समूह का माउण्ट ताल का भयंकर उद्भेदन । Volcano

(2) दरारी उद्भेदन (Fis sure Eruption)— भू-गर्भिक हलचलों से भूपर्पटी की शैलों में दरारें पड़ जाती हैं। इन दरारों से लावा धरातल पर प्रवाहित होकर निकलता है जिसे दरारी उद्भेदन कहते हैं। यह रचनात्मक प्लेट-किनारों के सहारे होता है। * इस प्रकार के उद्गार क्रीटैशियस युग में बड़े पैमाने पर हुए थे। जिससे लावा पठारों का निर्माण हुआ था। Volcano

ज्वालामुखी का विश्व वितरण
प्लेट विवर्तनिकी (Plate Tectonic) के आधार पर प्लेट किनारों के परिवेश में ज्वालामुखियों के क्षेत्र का वितरण वर्तमान समय में सर्वाधिक मान्य संकल्पना है। विश्वस्तर पर अधिकांश सक्रिय ज्वालामुखी प्लेट की सीमाओं के साथ सम्बन्धित हैं। लगभग 15 प्रतिशत ज्वालामुखी रचनात्मक प्लेट किनारों के सहारे तथा 80 प्रतिशत विनाशी प्लेट किनारों के सहारे पाये जाते हैं। * इनके अलावा कुछ ज्वालामुखी का उद्भेदन प्लेट के आन्तरिक भाग (Intra-Plate Region) में भी होता है।

(1) परिप्रशान्त महासागरीय मेखला (Circum Pacific Relt) – प्रशान्त महासागर में स्थित द्वीपों और उसके चारों ओर तरीय भाग में ज्वालामुखियों की संख्या अत्यधिक पायी जाती है। यहाँ जा विनाशात्मक प्लेट किनारों के सहारे ज्वालामुखी मिलते हैं। विश्व स के ज्वालामुखियों का लगभग 2/3 भाग प्रशान्त महासागर के दोनों तटीय भागों, द्वीप चापों तथा समुद्री द्वीपों के सहारे पाया जाता है। है इसे ;प्रशान्त महासागर का अग्निवलय; (Fire Ring of the Pacific Ocean) कहते हैं। यह पेटी अंटार्कटिका के माउन्ट इरेबस से शुरू होकर दक्षिण अमेरिका के एंडीज पर्वतमाला व उत्तर अमेरिका के रॉकी पर्वतमाला का अनुसरण करते हुए अलास्का, पूर्वी रूस, जापान, फिलीपींस आदि द्वीपों से होते हुए ;मध्य महाद्वीपीय पेटी; में मिल है। Volcano

मध्य महाद्वीपीय पेटी
(2) मध्य महाद्वीपीय पेटी (Mid-Continental Belt)— इस मेखला के अधिकांश ज्वालामुखी विनाशी प्लेट किनारों के सहारे आते हैं क्योंकि यूरेशियन प्लेट तथा अफ्रीकन एवं इण्डियन प्लेट का अभिसरण होता है। यह यूरेशिया महाद्वीप के मध्यवर्ती भागों में नवीन वलित पर्वतों के सहारे पूर्व से पश्चिम को फैली हुई है। यह आइसलैण्ड से प्रारम्भ होकर स्कॉटलैण्ड होती हुई अफ्रीका के कैमरून पर्वत की ओर जाती है। कनारी द्वीप पर इसकी दो शाखाएँ हो जाती हैं—

एक पश्चिम की ओर और दूसरी पूर्व की ओर। पूर्व की ओर वाली शाखा स्पेन, इटली, सिसली, तुर्की, काकेशिया, आरमेनिया, ईरान, अफगानिस्तान, पाकिस्तान, भारत, म्यांमार और मलेशिया होती हुई इण्डोनेशिया तक चली जाती है। इसके अतिरिक्त अरब में जार्डन की भ्रंश घाटी एवं लाल सागर होती हुई एक श्रृंखला अफ्रीका की विशाल भ्रंश घाटी तक फैली हुई है। पश्चिम की ओर वाली शाखा कनारी द्वीप से पश्चिमी द्वीप तक जाती है। यूरोप की राइन भ्रंश घाटी में अनेक विलुप्त ज्वालामुखी पाए जाते हैं।

मध्य अटलांटिक मेखला
(3) मध्य अटलांटिक मेखला (Mid Atlantic Belt ) — भूमध्य सागर के प्रकाश स्तम्भ कीउपमा, कौन से ज्वालामुखी को प्रदान किया गया है? -स्ट्राम्बोली (इटली) विश्व का सबसे ऊँचा ज्वालामुखी पर्वत कौन-सा और किस देश में है –

-कोटोपैक्सी (इक्वेडोर) किस महाद्वीप में एक भी ज्वालआमुखी नहीं है -ऑस्ट्रेलियाकिस महाद्वीप में मात् एक सक्रिय ज्वालामुखी पाया जाता है? अंटार्कटिका (माउण्ट इरेबस)किस ज्वालामुखी परिमेखला कोअग्नि वलयकी संज्ञा प्रदान की गई। – प्रशान्त महासागर के परिमेखला को केन्द्रीय उद्भेदन वाले ज्वालामुखियों में किस प्रकार का ज्वालामुखी सर्वाधिक विनाशकारी, विस्फोट एवं भयंकर होता है
पीलियन तुल्य -विश्व की सर्वाधिक ऊँचाई पर स्थित सक्रिय ज्वाला मुखी कौन-सा है?- ओजोस डेल सलाडो (6885 मी0 एण्डीज
पर्वत, चिली/अर्जेंटीना)मध्य महासागरीय कटक ज्वालामुखी मेखला की संज्ञा से भी अभिहित किया जाता है। यह मेखलारचनात्मक प्लेट किनारों के सहारे मिलती है।

ज्वालामुखी से संबन्धित एंव परिभाषा
Volcano UPSC/PCS/UPSSSC -ज्वालामुखी का तात्पर्य उस छिद्र (Opening) अथवा दरार (Repture) से है जिसका सम्बन्ध पृथ्वी के आन्तरिक भाग से होता है, और जिसके माध्यम से तप्त गैस, तरल लावा, राख, जलवाष्प आदि का निर्गमन होता है। ज्वालामुखी क्रिया के अन्तर्गत मैग्मा के निकलने से लेकर धरातल या उसके अन्दर विभिन्न रूपों में इसके ठण्डा होने की प्रक्रिया शामिल होती है। Volcano

(i) धरातल के नीचे भूगर्भ में मैग्मा के शीतल होकर जमने की प्रक्रिया, जिससे बैथोलिथ फैकोलिथ, लोपोलिथ, सिल तथा डाइक
स्वरूप की अन्तः स्थलाकृतियों का निर्माण होता है। इसका विवेचन चट्टानों के अध्याय में किया गया है। Volcano

(ii) दूसरे में धरातल के ऊपर घटित होने वाली क्रियाएँ सम्मिलित होती हैं। Volcano

इसमे प्रमुख जो निम्नवत हैं ।
ज्वालामुखी (Volcano) धरातलीय प्रवाह (Fissure Flows) गर्म जल के स्रोत (Hot Spring)गेसर (Geyser) धुँआरे (Fumaroles) इस व्याख्या से यह स्पष्ट हो जाता है कि ज्वालामुखी क्रिया एक ज्वालामुखी से निकलने वाले पदार्थों को तीन श्रेणियों में विभक्तकिया जाता है। Volcano

(i) गैस तथा जलवाष्प- ज्वालामुखी उद्भेदन के समय सर्वप्रथम गैसें एवं जलवाष्प बाहर आते हैं। इसमें जलवाष्प की मात्रा सर्वाधिक (60-90%) होती है* । अन्य गैसों में CO,, नाइट्रोजन (N), हाइड्रोजन (H), हाइड्रोजन क्लोराइड (Hcl), कार्बन मोनोआक्साइड (CO) हाइड्रोजन फ्लुओराइड (HF), हीलियम (He) एवं सल्फर डाइऑक्साइड आदि प्रमुख होती हैं।

(ii) विखण्डित पदार्थ — इसमें धूल एवं राख से बने चट्टानी टुकड़े (टफ); मटर के दाने के आकार वाले टुकड़े (लैपिली)*; कुछ इंच से लेकर कई फीट तक के व्यास वाले बड़े-बड़े चट्टानी टुकड़े बाम्ब कोणाकृत अपेक्षाकृत बड़े आकार के टुकड़े ब्रेसिया* आदि बाहर धरातल पर निकलते हैं। Volcano

(iii) लावा (Lava)— ज्वालामुखी उद्गार के समय भूगर्भ में स्थित पदार्थ को मैग्मा कहते हैं; जब मैग्मा धरातल पर निस्सृत होता है तो उसे लावा की संज्ञा दी जाती है; धरातल पर लावा के ठंडा होने के बाद वह आग्नेय चट्टान की उपमा धारण करता है। Volcano

सिलिका आधार पर लावा दो प्रकार के होते हैं ।
(a) एसिड लावा— यह अत्यन्त गाढ़ा तथा चिपचिपा होता है, जिसमें सिलिका की मात्रा अधिक होती है। अतः यह धरातल पर दूर तक फैलकर क्रेटर के आसपास गुम्बदाकार शंकु का निर्माण करता है। – स्ट्राम्बोली (इटली) एवं पाई-डी-डोम (फ्रांस) आदि।

(b) बेसिक लावा — यह हल्का, पतला, धरातल पर शीघ्रता से फैलने वाला एवं कम सिलिका युक्त लावा होता है। अतः इससे चपटा या शील्ड शंकु का निर्माण होता है। जैसे- मोनालोआ शंकु (हवाई द्वीप)। ध्यातव्य है कि वर्तमान समय में मैग्मा, लावा तथा आग्नेय चट्टानों का वर्गीकरण रासायनिक एवं खनिज संगठन के आधार पर किया गया है।

(i) फेल्सिक (Felsic)- इसमें सिलिका प्रधान खनिज क्वार्ट्ज तथा फेल्सफार की अधिकता होती है, जो रंग में हल्के होते हैं। (ii) मैफिक (Malic)— इस समूह के खनिज में मैग्नेशियम व लोह तत्व की प्रधानता
तथा सिलिका की अपेक्षाकृत न्यूनता होती है, जो रंग में गहरे होते हैं। जैसे— पायरॉक्सींस, एम्फीबोल्स तथा ऑल्वीन आदि

(iii) अल्ट्रामैफिक (Ultramafic)— फेल्सिक व मैफिक के मध्यस्थ गुणों वाले खनिजों को अल्ट्रामैफिक कहा जाता है। इनमें सिलिकान व एल्युमिनियम की मात्रा अधिक होती है।

ज्ञातव्य है कि फेल्सिक,अल्ट्रामैफिक एवं मैफिक के अन्तर्गत क्रमशः ग्रेनाइट, डायोराइट व गैंब्रो अंतर्जात लावा के और रायोलाइट, एंडेसाइट एवं बैसाल्ट क्रमशः बहिर्जात लावा के उदाहरण है। Volcano

• कि मड वल्केनो (Mud Volcano) क्या है? मड वल्केनो ऐसी प्राकृतिक रचना है, जिनमें से भूउत्सर्जित गैसों और कीचड़नुमा गाद जैसे तरल पदार्थों का उत्सर्जन होता है। मड वल्केनो पृथ्वी पर मौजूद टेक्टोनिक प्लेटों को अलग करने वाले सीमावर्ती क्षेत्रों

(Subdiction Zone) में या ज्यादातर इसके आस-पास पाये जाते हैं। USA, कनाडा, ताइवान, इटली, ईरान, पाकिस्तान, रोमानिया, चीन, जापान, इण्डोनेशिया एवं कोलंबिया सहित ये विश्व के अनेक देशों में पाये गये हैं परन्तु ये भारत में सिर्फ अण्डमान समूह के बाराटांग नामक द्वीप में पाये जाते हैं। ध्यातव्य है, कि विश्व का सबसे बड़ा मड;लूसी इंडोनेशिया में है।

ज्वाला मुखी के अंग
लावा जब ज्वालामुखी छिद्र के चारों तरफ क्रमशः जमा होने लगता है तो ज्वालामुखी शंकु (Volcanic Cone) का निर्माण होता है। जब जमाव अधिक हो जाता है तो शंकु काफी बड़ा हो जाता है तथा पर्वत का रूप धारण कर लेता है। इस प्रकार के शंकु को ज्वालामुखी पर्वत (Volcanic Mountain ) कहते हैं। इस पर्वत के ऊपर लगभग बीच में एक छिद्र होता है, जिसे ज्वालामुखी छिद्र (Volcanic Vent) कहते हैं। इस छिद्र का धरातल के नीचे भूगर्भ से सम्बन्ध एक पतली नली से होता है। इस नली को ज्वालामुखी नली (Volcanic Pipe ) कहते हैं। जब ज्वालामुखी का छिद्र विस्तृत हो जाता है तो उसे ज्वालामुखी का मुख (Volcanic Crater) कहते हैं। जब घंसाव या अन्य कारण से ज्वालामुखी का विस्तार अत्यधिक हो जाता है। तो उसे काल्डेरा (Caldera) कहते हैं। Volcano

ज्वालामुखी के प्रकार
विभिन्न आधारों पर ज्वालामुखी को अधोलिखित प्रकार से वर्गीकृत किया गया है। यथा—

(A) सक्रियता के आधार पर ज्वालामुखी उद्गारों के बीच अवकाश के आधार पर ज्वालामुखी को तीन श्रेणियों में विभक्त किया गया है।
(1) सक्रिय ज्वालामुखी (Active Volcano) — ऐसे ज्वालामुखी जिनके मुख से सदैव धूल, धुआं, वाष्प, गैसें, राख, चट्टानखण्ड, लावा, आदि पदार्थ बाहर निकलते रहते हैं। सक्रिय ज्वालामुखी कहलाते हैं। वर्तमान में इनकी संख्या 500 से अधिक है। भारत में एकमात्र सक्रिय ज्वालामुखी अण्डमान-निकोबार द्वीप समूह के बैरन द्वीप में है।
विश्व के कुछ प्रमुख सक्रिय ज्वालामुखी निम्नवत है
• हवाई द्वीप (USA) – किलायू *
• पापुआ न्यूगिनी लांगिला एवं बागाना *
• इण्डोनेशिया समेरू (जावा) *, मेरापी* (सर्वाधिक सक्रिय), , दुकोनो*
• तान्ना द्वीप (वनुआतु) – यासुर* (विगत् 800 वर्षों से सक्रिय)
• सिसली द्वीप का • माउण्ट एटना* – लिपारी द्वीप का – स्ट्राम्बोली*
• इक्वेडोर का – कोटोपैक्सी*
• अंडमान निकोबार के बैरन द्वीप में* –
• हवाई द्वीप का मौनालोवा * (UPPSC : 05, 14)
• अर्जेन्टीना चिली की सीमा पर स्थित ओजोस डेल सलाडो*
अंटार्कटिका -रास द्वीप पर स्थित माउण्टइरेबस
(2) प्रसुप्त ज्वालामुखी (Dormant Volcano) — ऐसे ज्वालामुखी जिसमें निकट अतीत में उद्गार नहीं हुआ है, लेकिन जिसमें कभी भी उद्गार हो सकता है। प्रसुप्त ज्वालामुखी की संज्ञा से जाने जाते हैं। जैसे—
• इटली का विसुवियस*
• जापान का फ्यूजीयामा*
• इंडोनेशिया का – क्राकाटाओ*
अण्डमान-निकोबार का – नारकोंडम द्वीप में
(3) शान्त ज्वालामुखी (Extinct Volcano)- वैसा ज्वालामुखी जिसमें ऐतिहासिक काल से कोई उद्गार नहीं हुआ है और जिसमें पुनः
उद्गार होने की सम्भावना नहीं हो। जैसे—
• ईरान का देमबंद
• पाकिस्तान- कोह सुल्तान • म्यांमार का माउन्ट पोपा
• तंजानिया का – किलिमंजारो*
• इक्वेडोर का – चिम्बराजो
• एण्डीज पर्वत श्रेणी का – एकांकागुआ
(B) उद्गार के अनुसार — ज्वालामुखी का उद्गार प्रायः दो = रूपों में होता है यथा-
(1) केन्द्रीय उद्भेदन (Central Eruption ) – जब
ज्वालामुखी उद्भेदन किसी एक केन्द्रीय मुख (vent) से भारी धमाके के साथ होता है तो उसे केन्द्रीय उद्भेदन कहते हैं। यह विनाशात्मक प्लेटो के किनारों के सहारे होता है।* ये कई प्रकार के होते हैं। यथा- हवाई तुल्य, स्ट्राम्बोली तुल्य, वलकेनियन तुल्य, पीलियन तुल्य तथा विसुवियस तुल्य। इनमें पीलियन प्रकार के ज्वालामुखी सबसे अधिक विनाशकारी होते हैं तथा इनका उद्गार सबसे अधिक विस्फोटक एवं भयंकर होता है। जैसे— पश्चिमी द्वीपसमूह के मार्टिनिक द्वीप का पीली (Pelee) ज्वालामुखी, सुण्डा जलडमरूमध्य का क्राकाटोवा ज्वालामुखी तथा फिलीपाइन द्वीप समूह का माउण्ट ताल का भयंकर उद्भेदन । Volcano

(2) दरारी उद्भेदन (Fis sure Eruption)— भू-गर्भिक हलचलों से भूपर्पटी की शैलों में दरारें पड़ जाती हैं। इन दरारों से लावा धरातल पर प्रवाहित होकर निकलता है जिसे दरारी उद्भेदन कहते हैं। यह रचनात्मक प्लेट-किनारों के सहारे होता है। * इस प्रकार के उद्गार क्रीटैशियस युग में बड़े पैमाने पर हुए थे। जिससे लावा पठारों का निर्माण हुआ था। Volcano

ज्वालामुखी का विश्व वितरण
प्लेट विवर्तनिकी (Plate Tectonic) के आधार पर प्लेट किनारों के परिवेश में ज्वालामुखियों के क्षेत्र का वितरण वर्तमान समय में सर्वाधिक मान्य संकल्पना है। विश्वस्तर पर अधिकांश सक्रिय ज्वालामुखी प्लेट की सीमाओं के साथ सम्बन्धित हैं। लगभग 15 प्रतिशत ज्वालामुखी रचनात्मक प्लेट किनारों के सहारे तथा 80 प्रतिशत विनाशी प्लेट किनारों के सहारे पाये जाते हैं। * इनके अलावा कुछ ज्वालामुखी का उद्भेदन प्लेट के आन्तरिक भाग (Intra-Plate Region) में भी होता है।

(1) परिप्रशान्त महासागरीय मेखला (Circum Pacific Relt) – प्रशान्त महासागर में स्थित द्वीपों और उसके चारों ओर तरीय भाग में ज्वालामुखियों की संख्या अत्यधिक पायी जाती है। यहाँ जा विनाशात्मक प्लेट किनारों के सहारे ज्वालामुखी मिलते हैं। विश्व स के ज्वालामुखियों का लगभग 2/3 भाग प्रशान्त महासागर के दोनों तटीय भागों, द्वीप चापों तथा समुद्री द्वीपों के सहारे पाया जाता है। है इसे ;प्रशान्त महासागर का अग्निवलय; (Fire Ring of the Pacific Ocean) कहते हैं। यह पेटी अंटार्कटिका के माउन्ट इरेबस से शुरू होकर दक्षिण अमेरिका के एंडीज पर्वतमाला व उत्तर अमेरिका के रॉकी पर्वतमाला का अनुसरण करते हुए अलास्का, पूर्वी रूस, जापान, फिलीपींस आदि द्वीपों से होते हुए ;मध्य महाद्वीपीय पेटी; में मिल है। Volcano

मध्य महाद्वीपीय पेटी
(2) मध्य महाद्वीपीय पेटी (Mid-Continental Belt)— इस मेखला के अधिकांश ज्वालामुखी विनाशी प्लेट किनारों के सहारे आते हैं क्योंकि यूरेशियन प्लेट तथा अफ्रीकन एवं इण्डियन प्लेट का अभिसरण होता है। यह यूरेशिया महाद्वीप के मध्यवर्ती भागों में नवीन वलित पर्वतों के सहारे पूर्व से पश्चिम को फैली हुई है। यह आइसलैण्ड से प्रारम्भ होकर स्कॉटलैण्ड होती हुई अफ्रीका के कैमरून पर्वत की ओर जाती है। कनारी द्वीप पर इसकी दो शाखाएँ हो जाती हैं—

एक पश्चिम की ओर और दूसरी पूर्व की ओर। पूर्व की ओर वाली शाखा स्पेन, इटली, सिसली, तुर्की, काकेशिया, आरमेनिया, ईरान, अफगानिस्तान, पाकिस्तान, भारत, म्यांमार और मलेशिया होती हुई इण्डोनेशिया तक चली जाती है। इसके अतिरिक्त अरब में जार्डन की भ्रंश घाटी एवं लाल सागर होती हुई एक श्रृंखला अफ्रीका की विशाल भ्रंश घाटी तक फैली हुई है। पश्चिम की ओर वाली शाखा कनारी द्वीप से पश्चिमी द्वीप तक जाती है। यूरोप की राइन भ्रंश घाटी में अनेक विलुप्त ज्वालामुखी पाए जाते हैं।

मध्य अटलांटिक मेखला
(3) मध्य अटलांटिक मेखला (Mid Atlantic Belt ) — भूमध्य सागर के प्रकाश स्तम्भ कीउपमा, कौन से ज्वालामुखी को प्रदान किया गया है? -स्ट्राम्बोली (इटली) विश्व का सबसे ऊँचा ज्वालामुखी पर्वत कौन-सा और किस देश में है –

-कोटोपैक्सी (इक्वेडोर) किस महाद्वीप में एक भी ज्वालआमुखी नहीं है -ऑस्ट्रेलियाकिस महाद्वीप में मात् एक सक्रिय ज्वालामुखी पाया जाता है? अंटार्कटिका (माउण्ट इरेबस)किस ज्वालामुखी परिमेखला कोअग्नि वलयकी संज्ञा प्रदान की गई। – प्रशान्त महासागर के परिमेखला को केन्द्रीय उद्भेदन वाले ज्वालामुखियों में किस प्रकार का ज्वालामुखी सर्वाधिक विनाशकारी, विस्फोट एवं भयंकर होता है
पीलियन तुल्य -विश्व की सर्वाधिक ऊँचाई पर स्थित सक्रिय ज्वाला मुखी कौन-सा है?- ओजोस डेल सलाडो (6885 मी0 एण्डीज
पर्वत, चिली/अर्जेंटीना)मध्य महासागरीय कटक ज्वालामुखी मेखला की संज्ञा से भी अभिहित किया जाता है। यह मेखलारचनात्मक प्लेट किनारों के सहारे मिलती है।

प्लेटों के अपसरण
* जहाँ पर दो प्लेटों के अपसरण (Divergence) के कारण या भ्रंशन का निर्माण होता है। इस भ्रंशन का प्रभाव एस्थिनोस्फीयर तक होता है, जहाँ से पेरिडोटाइट तथा बेसाल्ट मैग्मा ऊपर उठते हैं। * इनके शीतलन से नवीन क्रस्ट का निर्माण होता रहता है। कटक के पास नवीनतम लावा होता है तथा इससे (कटक से) जितना दूर हटते जाते हैं, लावा उतना ही प्राचीन होता जाता है। इस तरह की ज्वालामुखी क्रिया सबसे अधिक मध्य अटलांटिक कटक के सहारे होती है। आइसलैण्ड इस मेखला का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण सक्रिय क्षेत्र है, जहाँ लाकी, हेकला एवं हेल्गाफेल का उद्गार महत्त्वपूर्ण है। लेसर एण्टलीज (दक्षिणी अटलांटिक महासागर), एजोर द्वीप तथासेण्ट हेलना (उत्तरी अटलांटिक महासागर) आदि इस मेखला के अन्य प्रमुख ज्वालामुखी क्षेत्र हैं।

अन्तरा प्लेट ज्वालामुखी
(4) अन्तरा प्लेट ज्वालामुखी ( Intraplate Volcano)— महाद्वीपीय या महासागरीय प्लेट के अन्दर भी ज्वालामुखी क्रियायें होती हैं। जिसका कारण माइक्रो प्लेट गतिविधियों एवं गर्भ स्थल संकल्पना को माना जाता है, क्योंकि प्लेट विवर्तनिकी सिद्धान्त द्वारा अभी तक इनका स्पष्टीकरण नहीं हो पाया है। इस मेखला की एक प्रमुख श्रृंखला हवाई द्वीप से प्रारम्भ होकर उत्तर-पश्चिम दिशा में कमचटका तक चली गई है। स्मरणीय है कि मात्र हवाई द्वीप पर ही ज्वालामुखी उद्भेदन द्वारा भूकम्प आते हैं तथा सम्पूर्ण श्रृंखला भूकम्प रहित है। इसी कारण इसे भूकम्प रहित कटक कहते हैं। महासागरीय प्लेटों के अलावा महाद्वीपीय प्लेटों के आन्तरिक भागों में भी ज्वालामुखी का विशेषकर दरारी उद्भेदन होता है। उदाहरण के लिए कोलम्बिया पठार, भारतीय प्रायद्वीपीय पठार तथा ब्राजील एवं पराग्वे का पराना पठार आदि का निर्माण दरारी उद्भेदन के फलस्वरूप हुआ था Volcano

प्लेटों के अपसरण
* जहाँ पर दो प्लेटों के अपसरण (Divergence) के कारण या भ्रंशन का निर्माण होता है। इस भ्रंशन का प्रभाव एस्थिनोस्फीयर तक होता है, जहाँ से पेरिडोटाइट तथा बेसाल्ट मैग्मा ऊपर उठते हैं। * इनके शीतलन से नवीन क्रस्ट का निर्माण होता रहता है। कटक के पास नवीनतम लावा होता है तथा इससे (कटक से) जितना दूर हटते जाते हैं, लावा उतना ही प्राचीन होता जाता है। इस तरह की ज्वालामुखी क्रिया सबसे अधिक मध्य अटलांटिक कटक के सहारे होती है। आइसलैण्ड इस मेखला का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण सक्रिय क्षेत्र है, जहाँ लाकी, हेकला एवं हेल्गाफेल का उद्गार महत्त्वपूर्ण है। लेसर एण्टलीज (दक्षिणी अटलांटिक महासागर), एजोर द्वीप तथासेण्ट हेलना (उत्तरी अटलांटिक महासागर) आदि इस मेखला के अन्य प्रमुख ज्वालामुखी क्षेत्र हैं।

अन्तरा प्लेट ज्वालामुखी
(4) अन्तरा प्लेट ज्वालामुखी ( Intraplate Volcano)— महाद्वीपीय या महासागरीय प्लेट के अन्दर भी ज्वालामुखी क्रियायें होती हैं। जिसका कारण माइक्रो प्लेट गतिविधियों एवं गर्भ स्थल संकल्पना को माना जाता है, क्योंकि प्लेट विवर्तनिकी सिद्धान्त द्वारा अभी तक इनका स्पष्टीकरण नहीं हो पाया है। इस मेखला की एक प्रमुख श्रृंखला हवाई द्वीप से प्रारम्भ होकर उत्तर-पश्चिम दिशा में कमचटका तक चली गई है। स्मरणीय है कि मात्र हवाई द्वीप पर ही ज्वालामुखी उद्भेदन द्वारा भूकम्प आते हैं तथा सम्पूर्ण श्रृंखला भूकम्प रहित है। इसी कारण इसे भूकम्प रहित कटक कहते हैं। महासागरीय प्लेटों के अलावा महाद्वीपीय प्लेटों के आन्तरिक भागों में भी ज्वालामुखी का विशेषकर दरारी उद्भेदन होता है। उदाहरण के लिए कोलम्बिया पठार, भारतीय प्रायद्वीपीय पठार तथा ब्राजील एवं पराग्वे का पराना पठार आदि का निर्माण दरारी उद्भेदन के फलस्वरूप हुआ था Volcano

उपरोक्त से संबन्धित PDF डाउनलोड कर सकते हैं । Volcano ( ज्वालामुखी)

मध्य अटलांटिक मेखला

(3) मध्य अटलांटिक मेखला (Mid Atlantic Belt ) — भूमध्य सागर के प्रकाश स्तम्भ कीउपमा, कौन से ज्वालामुखी को प्रदान किया गया है? -स्ट्राम्बोली (इटली) विश्व का सबसे ऊँचा ज्वालामुखी पर्वत कौन-सा और किस देश में है –

-कोटोपैक्सी (इक्वेडोर) किस महाद्वीप में एक भी ज्वालआमुखी नहीं है -ऑस्ट्रेलियाकिस महाद्वीप में मात् एक सक्रिय ज्वालामुखी पाया जाता है? अंटार्कटिका (माउण्ट इरेबस)किस ज्वालामुखी परिमेखला कोअग्नि वलयकी संज्ञा प्रदान की गई। – प्रशान्त महासागर के परिमेखला को केन्द्रीय उद्भेदन वाले ज्वालामुखियों में किस प्रकार का ज्वालामुखी सर्वाधिक विनाशकारी, विस्फोट एवं भयंकर होता है
पीलियन तुल्य -विश्व की सर्वाधिक ऊँचाई पर स्थित सक्रिय ज्वाला मुखी कौन-सा है?- ओजोस डेल सलाडो (6885 मी0 एण्डीज
पर्वत, चिली/अर्जेंटीना)मध्य महासागरीय कटक ज्वालामुखी मेखला की संज्ञा से भी अभिहित किया जाता है। यह मेखलारचनात्मक प्लेट किनारों के सहारे मिलती है।

प्लेटों के अपसरण

* जहाँ पर दो प्लेटों के अपसरण (Divergence) के कारण या भ्रंशन का निर्माण होता है। इस भ्रंशन का प्रभाव एस्थिनोस्फीयर तक होता है, जहाँ से पेरिडोटाइट तथा बेसाल्ट मैग्मा ऊपर उठते हैं। * इनके शीतलन से नवीन क्रस्ट का निर्माण होता रहता है। कटक के पास नवीनतम लावा होता है तथा इससे (कटक से) जितना दूर हटते जाते हैं, लावा उतना ही प्राचीन होता जाता है। इस तरह की ज्वालामुखी क्रिया सबसे अधिक मध्य अटलांटिक कटक के सहारे होती है। आइसलैण्ड इस मेखला का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण सक्रिय क्षेत्र है, जहाँ लाकी, हेकला एवं हेल्गाफेल का उद्गार महत्त्वपूर्ण है। लेसर एण्टलीज (दक्षिणी अटलांटिक महासागर), एजोर द्वीप तथासेण्ट हेलना (उत्तरी अटलांटिक महासागर) आदि इस मेखला के अन्य प्रमुख ज्वालामुखी क्षेत्र हैं।

अन्तरा प्लेट ज्वालामुखी

(4) अन्तरा प्लेट ज्वालामुखी ( Intraplate Volcano)— महाद्वीपीय या महासागरीय प्लेट के अन्दर भी ज्वालामुखी क्रियायें होती हैं। जिसका कारण माइक्रो प्लेट गतिविधियों एवं गर्भ स्थल संकल्पना को माना जाता है, क्योंकि प्लेट विवर्तनिकी सिद्धान्त द्वारा अभी तक इनका स्पष्टीकरण नहीं हो पाया है। इस मेखला की एक प्रमुख श्रृंखला हवाई द्वीप से प्रारम्भ होकर उत्तर-पश्चिम दिशा में कमचटका तक चली गई है। स्मरणीय है कि मात्र हवाई द्वीप पर ही ज्वालामुखी उद्भेदन द्वारा भूकम्प आते हैं तथा सम्पूर्ण श्रृंखला भूकम्प रहित है। इसी कारण इसे भूकम्प रहित कटक कहते हैं। महासागरीय प्लेटों के अलावा महाद्वीपीय प्लेटों के आन्तरिक भागों में भी ज्वालामुखी का विशेषकर दरारी उद्भेदन होता है। उदाहरण के लिए कोलम्बिया पठार, भारतीय प्रायद्वीपीय पठार तथा ब्राजील एवं पराग्वे का पराना पठार आदि का निर्माण दरारी उद्भेदन के फलस्वरूप हुआ था Volcano

उपरोक्त से संबन्धित PDF डाउनलोड कर सकते हैं । Volcano ( ज्वालामुखी)

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